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- मछलियाँ :-
मछलियाँ :-
“मछलियाँ” जल में रहने वाले रीढधारी व असमतापी वाले को मछली कहते है जिसमे सांस लेने के लिए गलफड़ा और गति के लिए शाखित पक्ष रेखाओं से युक्त एकल व युग्म पक्ष होते है
“दूसरे शब्दों में” जो पृष्ठवंशी प्राणी शुद्ध रूप से जलीय जीवन के अनुकूल हो, पंखो के माध्यम से संतुलित रखते है एवं श्वसन के लिएऑक्सीजन गलफड़े द्वारा प्राप्त करते है उन्हें मछली कहते है
मछलियाँ का वर्गीकरण
- संघ :- कार्डेटा
- उपसंह :- वर्टिब्रेटा
- वर्ग :- पिसीज
मछलियों के प्रकार
मछलियाँ दो प्रकार की होती है
(1)खारे जल में रहने वाली समुद्री मछलियाँ
(2)मीठे जल में रहने वाली मछलियाँ :- यह मछलियाँ भूमि के सतह जल में रहने वाली मछली है
दक्षिणी एशियाँ की मीठे सतही जल की मछलियाँ का अण्डे देने का समय प्राय दक्षिणी पश्चिमी मानसून के आने के उपरान्त होता है अत: इस दौरान देश के राज्यों की सरकारे मछली पकड़ने एवं इसके मांस की बिक्री पर प्रतिबन्ध लगाती है क्योंकि एक ही मादा मछली हजारो की संख्या में अण्डे देती है अत: इसके मारे जाने पर हजारों की संख्या में नई पैदा होने वाली संतति से वंचित होना पड़ता है
राजस्थान में आर्थिक दृष्टिकोण से मत्स्य पालन हेतु पालने योग्य सतही मीठे जल की मछलियाँ निम्न है
(1) रोहू मछली
वैज्ञानिक नाम :- लेबिओ रोहिटा
- इसका शरीर नाव के आकार का होता है जिससे जल में तैरने में आसानी होती है
- इसके शरीर पर दो तरह के पंख पाए जाते है जिसमे कुछ जोड़ो में कुछ अकेले होते है
- इसके शरीर शल्को से ढका रहता है परन्तु सिर पर शल्क नही होते है
- सिर के भाग के दोनों तरफ गलफड़े होते है
- इसकी पीठ की तरफ का हिस्सा काला या हरा होता है
- पेट की तरफ का हिस्सा सुनहरी भूरे रंग का होता है
- इस मछली की आँखों पर पलके नही होती है एक वर्ष में इसका वजन ६७५ ग्राम व तीन वर्ष में वजन 45 Kg तक हो जाता है
- वयस्क की लम्बाई 90 सेंटीमीटर तक हो जाती है
- यह मछली 2 से 5 वर्ष में वयस्क हो जाती है 10 वर्ष में इसकी लम्बाई 2 मीटर तक पायी जाती है
- यह मछली सर्वभक्षी होती है जो जल के ऊपरी एवं पेंदे पर पाये जाने वाली जन्तुप्लवक एवं पादपप्लवक एवं शैवाल का भोजन करती है
मधुमक्खी पालन ,,,,,, दीमक का वर्गीकरण,,,,,,,
(2) कतला मछली
वैज्ञानिक नाम :- कटला कटला
- यह दक्षिणी एशिया की मछली है
- इस मछली का सिर बड़ा, निचला जबड़ा फैला हुआ होता है
- प्रथम वर्ष में इसका वजन ९०० ग्राम तक हो जाता है 2 वर्ष की आयु तक वजन 2 Kg होने पर यह यौन परिपक्वता को प्राप्त करती है
- इसकी लम्बाई 1.8 मीटर एवं वजन 35 Kg तक पहुँच जाता है इसकी त्वचा पर शल्क होते है यह सर्वभक्षी होती है भोजन जल की ऊपरी एवं मध्य सतह से लेती है
केंचुआ की संरचना,,,,,, पादप रोग विज्ञान,,,,,,,
(3) कल्बासु मछली
वैज्ञानिक नाम :- लेबियो कल्बासु
- यह दक्षिणी एशिया एवं दक्षिणी पूर्वी एशिया में पायी जाती है इसे काली रोहू भी कहते है
- इसकी पीठ वाला हिस्सा पेट की तुलना में अधिक उत्तल होता है
- इसके होठ मोटे, झालरदार बार्बल्स के दो जोड़े, नाक पर कोई छिद्र नही होता है
- इसका रंग काला होता है
- नदियों के संग्रह में सबसे बड़ा नमूना 300 सेंटीमीटर तक पाया गया है
- यह मछली जल की निचली सतह से भोजन लेती है भोजन में वनस्पति पदार्थ क्रस्टेशियंश, कीटो के लार्वा, शैवाल, कीचड़ एवं रेत को खाती है
- यह तालाब में अच्छी सफाई करके उसकी स्वच्छता में सुधार करती है इसके यकृत में 5.5 ग्राम तेल पाया जाता है जो विटामिन A का अच्छा स्रोत होता है
कवक का वर्गीकरण,,,,,,, जीवाणु का वर्गीकरण,,,,,,,
(4) मृगाल मछली
वैज्ञानिक नाम :- सिरहिनस मृगाल
- यह मछली दक्षिणी एशिया की प्रमुख मछली है
- यह मछली तेज बहती नदियों में रहती है
- ये मछली लवणीय जल को सहने कर सकती है
- इस चली की अधिकतम लम्बाई 2 फीट एवं वजन 2 Kg तक हो सकता है
- इसके सिर के लम्बाई के बराबर चौड़ाई होती है
- इसके शरीर का उदर वाला निचला हिस्सा चाँदी के समान चमकीला एवं सफेद होता है
- इस मछली के पंखो का रंग नारंगी होता है
- यह मछलियाँ सभी प्रजातियों के साथ जीवनयापन करती है
- इसका प्रथम वर्ष में वजन 600 से ७०० ग्राम होता है इसका वजन रोहू व् कतला की तुलना में धीरे बढ़ता है एवं 2 वर्ष पश्चात् विकास दर धीरे हो जाती है
विषाणु का वर्गीकरण,,,,,,,, कीट विज्ञान,,,,,,,,
(5) महाशीर मछली
वैज्ञानिक नाम :- टोर टोर
- इस मछली के पृष्ठीय शल्की क्षेत्र काला एवं पेट की तरफ का हिस्सा सफेद होता है
- परिपक्व अवस्था में इसकी लम्बाई 36 सेंटीमीटर तक होती है परन्तु अधिकतम कीर्तिमान 150 सेंटीमीटर लम्बाई एवं 68 Kg तक इसका वजन पाया जाता है
- यह मछली चट्टानी पेन्दो में तथा तेज बहती नदी और झरनों में मिलती है
- यह सर्वभक्षी स्वभाव की होती है वर्षा ऋतु में यह जल के बहाव के विपरित कई किलोमीटर चलते के पश्चात मानव हस्तक्षेप से मुक्त प्रदूषित जल में अपने अण्डे देती है अण्डे देने के पश्चात् अगस्त सितम्बर महिने में यह जल के बहाव की दिशा में चलती है
- यह मछली देशान्तर स्वभाव की होती है इसके अत्यधिक दोहन, आवासीय नुकसान से इसकी जनसंख्या में तेजी से गिरावट देखने को मिल रही है
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