जनन स्तरों का निर्माण (Formation of germ layers)
कन्दुकन प्रक्रिया के अन्तर्गत सम्पन्न परिवर्तन या संरचना विकास गति, योक प्लम अवस्था में आधान्त्र गुहा का निर्माण होता है| इस गुहा के निर्माण तथा विस्तार के कारण ब्लास्टोसील गुहा का विलोपन होता है| यह कन्दुकन की पूर्णतया को दर्शाती है|
प्राथमिक जनन स्तर का निर्माण गेस्टुला की निम्न प्रकार की कोशिकाओं से होता है|
(1) बाह्यचर्म (Ectoderm)
बाह्यचर्म के निर्माण में सक्रिय ध्रुव पर स्थित माइक्रोमियर्स सूक्ष्म तथा काले रंग की कोशिकाएँ भाग लेती है| ये कोशिकाएँ फैलकर बाह्यचर्म स्तर का निर्माण करती है|
(2) अन्त: चर्म (Endoderm)
आधान्त्र गुहा घेरने वाले स्तर को अन्त: चर्म कहते है| इसका निर्माण प्रतिपृष्ठ तल पर उपस्थित मेगामियर्स कोशिकाओं द्वारा होता है| आधान्त्र गुहा के निचले तल पर उपस्थित मीसेण्डोडर्मल तथा कोशिकाओं द्वारा होता है, आधान्त्र गुहा के निचले तल पर उपस्थित मीसेण्डोडर्मल तथा प्रिज्म्टिव बाह्यचर्म कोशिकाएँ अन्त: चर्म का निर्माण करते है|
(3) मध्यचर्म (Mesoderm)
अन्त: चर्म तथा बाह्यचर्म के मिलने वाले स्थान पर बाह्यचर्म की कोशिकाओं की मोटाई में वृद्धि के कारण एक आदि रेखा की उत्पत्ति होती है, इस रेखा के दोनों ओर तीव्र विभाजन के फलस्वरूप एकस्तरीय मीसोडरर्म निर्मित होती है| यह पुनः विभाजन से दो स्तरों का निर्माण करती है| मध्यचर्म के ये दो स्तर कायिक मध्यचर्म तथा स्पलेंचिक मध्यचर्म कहलाते है| कायिक स्तर बाहरी होता है|
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नियति मानचित्र (fate map) क्या है?
नियति मानचित्र के अन्तर्गत परिपक्व अण्डे अर्थात प्रारम्भिक परिवर्धित भ्रूण का अध्ययन किया जाता है, जो परिवर्धन के साथ-साथ विभिन्न संरचनाओ तथा क्षेत्रों के विशिष्ट भागों की कार्बनिक संरचना में परिवर्तन को दर्शाते है| अतः नियति चार्ट या मानचित्र द्वारा एक विकसित होते भ्रूण के परिवर्धित भाग का भविष्य दर्शाया/प्रदर्शित किया जाता है| नियति मानचित्र भ्रूणीय परिवर्धन के दौरान निर्मित युग्मनज, ब्लास्टुला अवस्था, कन्दुकन अवस्था में की जाती है तथा इसकी सहायता से विकसित होते भ्रूण के विभिन्न क्षेत्रों का मानचित्रिकरण करके सम्भावित निर्मित अंगो का पूर्व अनुमान लगाया जाता है|
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नियति मानचित्र निर्माण की विधियाँ (Methods of fate mapping)
नियति मानचित्र के निर्माण की कुछ कृत्रिम विधियाँ निम्न है|
- सर्वप्रथम वोग्ट ने वाइटल डाइ स्टेनिंग विधि का विकास किया| इस विधि के अन्तर्गत एम्फीबियन में ब्लास्टुला प्रावस्था का वाइटल डाइज द्वारा स्टैनिंग किया जाता है|
- कार्बन पार्टिकल मार्किग का आविष्कार स्प्राट द्वारा किया गया| इस विधि में कार्बन कणों को चिन्हित करने में प्रयोग किया जाता है|
- रेडियोएक्टिव नामांकन इस आधुनिक विधि में रेडियोएक्टिव पदार्थो के उपयोग द्वारा भविष्य मानचित्र को दर्शाते है|
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बाह्य या अतिरिक्त भ्रूण झिल्लियाँ (Extra-embryonic Membranes)
पक्षी भूमि पर अण्डे देते है, सकोशी अण्डो का कैल्शियम कार्बोनेट से बना कवच यांत्रिक आघात एवं निर्जलीकरण जैसे खतरों से रक्षा करता है, जबकि विशेष रूप से विकसित गर्म कलाएँ भ्रूण को पोषण श्वसन, उत्सर्जन जैसी जैविक क्रियाओं के अतिरिक्त सुरक्षा भी प्रदान करती है|
गर्म झिल्लियाँ भ्रूण बाह्य ब्लास्टोडर्म से विकसित होती है और वास्तविक भ्रूण के निर्माण में भाग नही लेती है, अतः भ्रूण बाह्य कलाएँ भी कहते है| भ्रूणकलाएँ पीतक कोष, उल्ब या एम्निऑन, जरायु या कोरियोन तथा अपरापोषिका प्रकार की होती है|
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पीतक कोष (yolk sac)
भ्रूण के भोजन का मुख्य पीतक है| यह कोषसमान वेण्टन कला द्वारा घिरा होता है, जिसे पीतक कोष कहते है| पीतक कोष पीतक की रक्षा करता है, उसे सही स्थिति में बनाए रखता है, उसे पचाता और अवशोषित करता है| इस प्रकार यह भ्रूण के पोषण का प्राथमिक अंग होता है|
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उल्ब और जरायु (Amnion and chorion)
उल्ब और जरायु साथ-साथ विकसित होती है| आन्तरिक स्तर वास्तविक उल्ब कहलाता है तथा स्तर सीरमी कला या जरायु कहलाता है| उल्ब एवं जरायु के बीच की भ्रूण बाह्य प्रगुहा कोरियोनिक गुहा कहलाती है|
उल्ब भ्रूण के चारों ओर एक जलाशय प्रदान करके उसके निर्जनल को दूर करता है एवं उल्ब तरल एक रक्षी गद्दी की भाँती कार्य करती है| जरायु अपरापोषिक के साथ श्वसन के लिए कार्य करती है|
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अपरापोषिका (Allantois)
उल्ब एवं जरायु के बीच भ्रूण बाह्य प्रगुहा में अपरापोषिका पाई जाती है| यह एक आशय के समान संरचना होती है, जो ऊष्मायन के लगभग चौथे दिन में प्रकट होती है| अपरापोषिका भ्रूणीय श्वसन अंग तथा भ्रूणीय मूत्राशय का कार्य करती है|
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