Blastulation || कोरकभवन एवं कोरक के प्रकार

कोरकभवन (Blastulation) एवं कन्दुकनविदलन के फलस्वरूप 16-32 कोशिकाएँ बनने पर जर्मीनल डिस्क मोरुला अवस्था के संगत होती है| दूसरे शब्दों में निरन्तर विदलनो के उपरान्त कोशिकाओं की बनी एक ठोस गेंद को मोरुला कहते है|

मोरुला कोरक गुहाविहीन होती है| युग्मनज में प्रथम तथा द्वितीय विदलन लगभग समान होते है, किन्तु तृतीय विदलन के पश्चात् विभाजन असमान व अनियमित हो जाता है|

इस अनियमित विभाजन के परिणामस्वरूप युग्मज में सक्रिय ध्रुव छोटी काले रंग की कोशिकाएँ बन जाती है| ये कोशिकाएँ माइक्रोमियर्स कोशिकाएँ कहलाती है, जबकि अल्पक्रिय ध्रुव पर पीतक युक्त बड़ी सफेद कोशिकाएँ निर्मित हो जाती है, जिन्हें मेगामियर्स कहा जाता है|

चूजे के भ्रूणीय परिवर्धन में ब्लास्टोडर्म का स्वतन्त्र किनारा तेजी से वृद्धि करके पीतक के ऊपर फैल जाता है एवं सबजर्मिनल गुहा के बनने के कारण इसका केन्द्रीय भाग पीतक से पृथक हो जाता है, फलस्वरूप दो क्षेत्र, पेल्यूसिडा एवं ओपेका का निर्माण होता है, जिससे पेल्यूसिडा क्षेत्र मुख्य भ्रूण का शरीर तथा ओपेका क्षेत्र सहायक भ्रूण संरचनाएं बनाता है|

मेंढक में मोरुलाभवन अनुपस्थित तथा एक कोरक या ब्लास्टुला प्रावस्था बनती है|

कोरकभवन (Blastulation)क्या है (what is korkabhavan)

युग्मज में विदलन के परिणामस्वरूप बनी कोशिकाओं में स्वयं के आकार को गोल बनाने की प्रवृति होती है| यही कारण है, कि तीसरे विदलन के पश्चात् एनीमल पोल पर माइक्रोमियर्स तथा वेजीटल पोल पर मेगामियर्स कोशिकाएँ निर्मित होती है तथा इन कोशिकाओं के मध्य खण्डीभवन गुहिका का निर्माण शुरू हो जाता है|

यह खण्डीभवन गुहा विदलन के फलस्वरूप बनी 32 कोशिकीय अवस्था में पूर्णरूप से स्पष्ट हो जाती है| सक्रिय ध्रुव पर स्थित इस गुहा को कोरक गुहा कहा जाता है| विदलन की यह अवस्था ब्लास्टुला कहलाती है| इस मोरुला से ब्लास्टुला बनने की क्रिया कोरक भवन कहलाती है|

कोरक के भाग (Parts of Blastula)

कोरक गुहा बनने के उपरान्त विदलन प्रक्रिया से गुहा का आकार निरन्तर बढ़ता जाता है| कोरक गुहा के आकार में वृद्धि के परिणामस्वरूप सक्रिय ध्रुव पर स्थित कोशिकाओं को परत अल्पक्रिय ध्रुव पर स्थित मेगामियर्स कोशिकाओं की अपेक्षा पतली हो जाती है| इस अवस्था में कोरक का बाह्य भाग या स्तर भाग ट्रोफोब्लास्ट कहलाता है| स्तनधारियों में यह बाह्यस्तर गोनेड़ोट्रापिक हॉर्मोन का स्रावण करता है|

ब्लास्टुला का आन्तरिक भाग एम्ब्रियोब्लास्ट कहलाता है, इस आंतरिक कोशिकाओं के स्तर से भ्रूण की जनन स्तरों का निर्माण होता है|

विदलन के प्रकार, पीतक की मात्रा वम वितरण के अनुसार, जन्तुओं में निम्न प्रकार के कोरक पाए जाते है|

कोरक के प्रकार (types of blastula)

  1. पूर्णभंजी समान विदलन के परिणामस्वरूप बना कोरक (बड़े कोरक खण्ड एवं कम संख्या) घनकोरक कहलाता है| उदाहरण – मोलस्क, नेरीज एवं कुछ सीलेन्ट्रेट्स|
  2. पूर्णभंजी समान विदलन के फलस्वरूप बना कोरक, जिसमें कोरको की संख्या कम तथा आकार छोटा होता है, प्रगुही कोरक कहलाता है| उदाहरण – एम्फीऑक्सस , इकाइनोडर्मेटा|
  3. एम्फीब्लास्टुला कोरक पूर्ण असमान विदलन के फलस्वरूप बनता है तथा यह एम्फीबिया वर्ग के जन्तुओं में पाया जाता है|
  4. बिम्ब कोरक अतिगोलार्द्ध पीतकी अण्डो में अंशभंजी विम्बाभ विदलन के फलस्वरूप बनता है| यह शार्क मछलियाँ, अस्थिल, पक्षी, सरीसृप एवं स्तनधारी में पाया जाता है|
  5. पेरिकोरक या सतही कोरक सतही विदलन के फलस्वरूप केन्द्र पीतक अण्डे में पाया जाता है|
  6. पोष कोरक पूर्णभंजी समान विदलन के द्वारा पोष कोरक का निर्माण होता है तथा लगातार विदलन के फलस्वरूप कोरक खण्डों के मध्य में एक गुहा कोरकगुहा या ब्लास्टोसीन विकसित हो जाती है, जो कोशिकीय स्त्रावण; जैसे- कार्बोहाइड्रेट व एल्यूमिन से भरी रहती है| इस अवस्था को ब्लास्टुला या कोरक कहते है| पक्षियों में इसे ब्लास्टोसिस्ट तथा स्तनियो में ब्लास्टोडर्मिक आशय कहते है|

गेस्टुलाभवन क्या है?

कोरक में कोशिकाओं के अप्रवास तथा पुर्नस्थापना से कोरक अवस्था अनेक परिवर्तनों से गुजरती है, जिनमे एक स्तरीय ब्लास्टुला का द्विस्तरीय या त्रिस्तरीय गैस्टुला में परिवर्तन हो जा है यह प्रक्रिया कन्दुकन कहलाता है|

कन्दुकन विधियाँ (Modes of gastrulation)

कन्दुकन प्रक्रिया में, आधान्त्र गुहा का निर्माण ब्लास्टोसील का विलोप तथा तीनों जनन स्तरों का निर्माण प्रमुख क्रियाएँ होती है| कन्दुकभवन के अन्तर्गत होने वाले परिवर्तन या संरचनात्मक विकास गतियाँ जनन स्तरों के निर्माण आधान्त्र गुहा के निर्माण तथा कोरक गुहा के विलोपन हेतु उत्तरदायी है|

ये संरचना विकास गतियाँ या परिवर्तन अध्यारोहण तथा अतः रोहण प्रकार के होते है| अतः रोहण को पुनः अन्तर्वलन वर्तन या लुढ़कना में विभक्त किया जा सकता है| अध्यारोहण तथा अन्त रोहण के अतिरिक्त अतः क्रमण या बहुअन्तर्वलन विस्तारण, आदि भी संरचना विकास गतियाँ है| इन सभी गतियों का अध्ययन कन्दुक भवन विधियों के अंतर्गत करते है|

इसमें ब्लास्टोमीयर्स मॉर्फोजिनेटिक विस्थापन गतियाँ करते है, ये प्रमुख गतियाँ एपीबोली अर्थात भावी एक्टोडर्म कोशिकाओं का अन्दर की ओर चलता है|

भ्रूण तीन जनन स्तरीय बन जाता है तथा आधान्त्रगुहा या गैस्ट्रोसील गुहा का निर्माण हो जाता है| चूजे के भ्रूणीय परिवर्धन में प्राथमिक जनन स्तर के निर्माण का अध्ययन सर्वप्रथम पाण्डर द्वारा किया जाता है|

अविभेदित कोरक चर्म से जनन स्तरों का पृथक्करण दो चरणों में पूर्ण होता है| प्रथम चरण के दौरान एक जनन स्तर अलग होता है|शेष दो जनन स्तरों का पृथक्करण द्वितीय चरण में होता है|

प्रथम चरण में बाह्य जनन स्तर पृथक होता है| उदाहरण-एम्फीबिया, मछलियाँ एवं एम्फीऑक्सस|

द्वितीय चरण में संयुक्त मध्यान्तर्जन पृथक होते है| सरीसृप, पक्षी एवं स्तनधारियों में एण्डोडर्म प्रथम चरण में, जबकि एक्टोडर्म तथा मीजोडर्म का पृथक्करण द्वितीय चरण में होता है| रासायनिक विभेदन के कारण होने वाली प्रक्रिया, गैस्टुलेशन बहुकोशिकीय शरीर निर्माण में एक महत्वपूर्ण प्रावस्था है| कन्दुकन प्रक्रिया में निर्मित आधान्त्र गुहा भविष्य में आहारनाल में परिवर्तित हो जाती है|

अंत निर्माण – इसमें विभिन्न अंगो की प्रारम्भिक रचनाएँ बनती है| वृद्धि इसके अन्तर्गत प्रारम्भिक अवस्था के अंगो के परिमाण में वृद्धि होती है| वृद्धि कोशिका विभाजन द्वारा होती है|

विभेदन – इसके अन्तर्गत विभिन्न अंगो के प्रारम्भिक रचनाओं में कोशिकीय संरचनात्मक और कार्यात्मक परिवर्तन होता है| इससे विभिन्न ऊतकों और अंगो में कार्य विशेष करने की क्षमता विकसित होती है और एक ऊतक दूसरे से भिन्न हो जाता है|

कायान्तरण – जिन जन्तुओं में लार्वा का विकास होता है, उनमे कायान्तरण पाया जाता है|

पुनर्जनन – क्षतिग्रस्त अंगो का पुनः निर्माण होता है| ब्लास्टोजिनेसिस अलैंगिक जनन करने वाले जन्तुओं में पाई जाती है, इसके अंतर्गत एक शरीरिक कोशिका से सम्पूर्ण नर जीव की उत्पत्ति होती है| जैसे – हाइ ड्रा में मुकुलम|

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