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- Plant Breeding क्या है-पादप प्रजनन
Plant Breeding क्या है-पादप प्रजनन
Plant Breeding यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंदर फसलों के जीनप्रारूप में परिवर्तन करके उनको मानव के लिए उपयोगी बनाने की प्रक्रिया को पादप प्रजनन(Plant Breeding)कहते है|
इस Plant Breeding के अंदर हम उन विधियों और सिद्धांतो का अध्ययन करते है जिसके द्वारा उपयोगी परिवर्तन फसलों में किये जाते है|
जाने पादप प्रजनन की क्रियाएँ(Activities in plant Breeding)
पादप प्रजनन की क्रियाएँ के लिए बीजों के वितरण से लेकर उन्नत किस्मों के विकास तक करनी पड़ती है जिसके अंदर निम्न क्रियाएँ होती है|
(1) चयन:-
चयन के अंदर उत्तम गुणों वाली फसले तथा अच्छी फसलों को छाँटकर अलग करने की क्रिया को चयन करना कहते है|जबकि इसे Plant Breeding का महत्वपूर्ण चरण माना जाता है|
(2) विविधता का उत्पादन:-
यदि पादप प्रजनन में विविधता का सुधार नही हो तो किसी भी फसल में सुधार करना सम्भव नही है जबकि फसल सुधार के लिए विविधता का उत्पादन आवश्यक होता है, लेकिन विविधता कई प्रकार से उत्पन्न की जाती है|
(1)ग्राम्यन के द्वारा आप किसी भी फसल की जंगली प्रजातियों को खेती के लिए उपयोगी बना सकते है|
(2)पादप पुर:स्थापन के द्वारा आप फसल की किसी भी किस्म को उस स्थाप पर लगाना जिस स्थान पर वह पहले पायी या उगाई नही गई हो|
(3)जननद्रव्य संग्रह के द्वारा फसल प्रजाति की जंगली सम्बंधित फसलों में आनुवांशिक द्रव्य के पूरे समूह को उस प्रजाति का जननद्रव्य कहते कहते है
(4)बहुगुणिता के अंदर स्पेसीज की कायिक कोशिकाओं में पाये जाने वाले गुणसूत्रों की संख्या 2n से अधिक होने की अवस्था को बहुगुणिता कहते है|
(5)संकरण की सहायता से आप फसलों में संकरण क्रिया द्वारा उन्नत किस्मे उत्पन्न कर सकते है|
(6)उत्परिवर्तन किसी जीव के वंशानुगत परिवर्तन को उत्परिवर्तन कहते है|
(7)आनुवांशिकी अभियांत्रिकी इसके अंदर जैविक करको को पादप कोशिकाओं के जीन संरचना में परिवर्तन की क्रिया को आनुवांशिकी अभियांत्रिकी कहते है|
(3)गुणन:-
गुणन का इस्तेमाल फसलों में कई चरणों में किया जाता है तथा इसके कारण ही देश को लाभ होता है और जिससे किसानों को उन्नत किस्मों वाले बीज प्राप्त हो जाते है|
(4)मूल्यांकन:-
किस्मों के अंदर विकसित लाइनों के निष्पादन की तुलना करना तथा कई स्थानों पर दो से अधिक वर्षो तक उपज परिक्षण के माध्यम से की जाती है|
(5)वितरण:-
इसके अंदर उच्च गुणवता वाले बीजो को किसानों तक पहुचाने के लिए की गई क्रियाओं को वितरण कहते है|
कृत्रिम एवं प्राकृतिक वर्णों में अंतर
अभिलक्षण | कृत्रिम वरण | प्राकृतिक चरण |
वरण का कारक | इसके अंदर मानव क्रियाएँ होती है | इसके अंदर प्राकृतिक कारक होते है |
समष्टि अनुकूलन | इसके अंदर प्रजनन समष्टियों में अनुकूलन बढ़ता है | इसके अंदर प्राकृतिक समष्टियों में प्राकृतिक वातावरण में अनुकूलन बढ़ता है |
समष्टि में विविधता | इसके अंदर विविधता में कमी aa जाती है, और अनुकूलन बढ़ता है | इसके अंदर अधिक विविधता बनी रहती है |
जनन | इसके अंदर जनन केवल चयन किये गए जीनप्रारुपो द्वारा होता है | इसके अंदर जनन समष्टि के सभी जीनप्रारुपो द्वारा होता है |
जीन कोष तथा कितने प्रकार के होते है:-
जीन कोष के अंदर प्रजातियों के आपस में संकरण होता है तथा इनमे उपस्थित जीन कोषों को जीन कहते है जीन कोष तीन प्रकार के होते है|
प्राथमिक जीन कोष:-
देखा जाये तो प्राथमिक जीन कोष के अंतर्गत सभी प्रजातिया आती है और उनके संकर उर्वर होते है इनमे संकरण सफलतापूर्वक होता है|
द्वितीय जीन कोष:-
इसके अंतर्गत संकरण दो जातियों के मध्य होता है जबकि द्वितीय जीन कोष के सदस्यों का संकरण प्राथमिक जीन कोष के सदस्यों के साथ बहुत कठिनाई से होता है और उनसे प्राप्त संकरण F1संकरण, बंध्य एवं आंशिक उर्वर होते है|
तृतीयक जीन कोष:-
इसके समूह में उन सभी प्रजातियों को रखा जाता है जिनका प्राथमिक जीन कोष के सदस्यों के साथ संकरण बहुत कठिन होता है उनसे प्राप्त पोधे F1 बंध्य होते है|
भारत के महत्वपूर्ण कृषि शोध संस्थान की सारणी
क्र.सं. | केंद्र/संस्थान | स्थान |
1. | केन्द्रीय चावल अनुसंधान संस्थान | कटक(उड़ीसा) |
2. | केन्द्रीय तंबाकू अनुसंधान संस्थान | राजामुंद्री(आंध्रप्रदेश) |
3. | केन्द्रीय शुष्क क्षेत्र अनुसंधान संस्थान | जोधपुर(राजस्थान) |
4. | कपास तकनीकी अनुसंधान प्रयोगशाला | माटुंगा(मुंबई) |
5. | राष्ट्रीय बीजीय मसाला अनुसंधान केन्द्र | तबीजी,अजमेर(राजस्थान) |
6. | भारतीय मक्का अनुसंधान संस्थान | लुधियाना(पंजाब) |
7. | भारतीय गेंहू अनुसंधान संस्थान | करनाल(हरियाणा) |
8. | गन्ना प्रजनन संस्थान | कोयंबटूर(तमिलनाडु) |
9. | जूट तकनीकी अनुसंधान प्रयोगशाला | कोलकाता(प.बंगाल) |
10. | भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान | नई दिल्ली |
11. | भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान | लखनऊ(उ.प्र.) |
12. | भारतीय दलहन अनुसंधान संस्थान | कानपुर (उ.प्र.) |
13. | ज्वार अनुसंधान निदेशालय | हैदराबाद (आंध्रप्रदेश) |
14. | राष्ट्रीय पादप बायोटेक्नोलोजी अनुसंधान केन्द्र | नई दिल्ली |
15. | मूंगफली अनुसंधान,निदेशालय | जूनागढ़(गुजरात) |
16. | राष्ट्रीय सरसों अनुसंधान केंद्र | भरतपुर(राजस्थान) |
17. | सोयाबीन अनुसंधान निदेशालय | इंदौर (मध्यप्रदेश) |
18. | कन्द्रीय कपास अनुसंधान | नागपुर(महाराष्ट्र) |
19. | तिलहन अनुसंधान निदेशालय | हैदराबाद |
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जननद्रव्य का वर्गीकरण(Classification of Germplasm)
उत्पति के आधार पर जननद्रव्य को दो वर्गो में बाँटा जा सकता है |
(1)देशी जननद्रव्य :- अपने ही देश में उत्पन्न जननद्रव्य को देशी जननद्रव्य कहते है |
(2)विदेशी जननद्रव्य :- अन्य देशो में उत्पन्न जननद्रव्य को विदेशी जननद्रव्य कहते है |
ग्राम्यन के आधार पर जननद्रव्य को दो वर्गो में बाँटा जा सकता है |
(1)कृष्य जननद्रव्य :- खेतों में उगाई जाने वाली प्रजातियाँ को |
(2)जंगली जननद्रव्य :- जंगल में उगने वाली प्रजातियों को |
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