पिसीज वर्ग || महावर्ग पिसीज (Super-Class-Pisces)

महावर्ग पिसीज (Super-Class-Pisces) के सभी प्रकार का वर्गीकरण करने वाले है जिसमे महावर्ग पिसीज का भी वर्गीकरण करते है|

संघ-कॉर्डेटा को दो उप-समूह-एक्रेनिएटा एवं क्रेनिएटा में बाँटा गया है| उप-समूह-क्रेनिएटा में केवल उप-संघ-वर्टिब्रेटा आता है, जो पुनः दो विभागों, एग्नेथा एवं ग्नेथा में विभाजित किया जाता है| ग्नेथा में महावर्ग-पिसीज एवं टेट्रापोड़ा (एम्फीबिया, रेप्टीलिया, एवीज एवं स्तनी वर्ग) आते है|

महावर्ग पिसीज (Super-Class-Pisces)

मीन, शीत रुधिरतापी, पृष्ठ कशेरुक, क्लोम तथा पंख युक्त होती है| मछलियों का अध्ययन इक्थियोलॉजी (Lchthyology) कहलाता है| कुछ मीनों का शरीर शीर्ष, उदर तथा पुच्छ का बना होता है| इनका ह्दय द्विकोष्ठीय तथा शिरीय होता है अर्थात ह्दय में केवल अशुद्ध रुधिर बहता है| मछली का शरीर शल्को से घिरा भी हो सकता है तथा नही भी| मछलियाँ एनएम्नियौट्स अर्थात उल्ब रहित होते है|

उदाहरण -उड़न मछली, मच्छर भक्षी मछली, समुद्री घोड़ा|

महावर्ग -मत्स्य को अंत: कंकाल शल्क विन्यास एवं क्लोम स्थिति के आधार पर वर्ग-प्लैकोडर्मी, कॉन्ड्रीइक्थीज़​ एवं ऑस्टिक्थीज में विभाजित किया जाता है|

महावर्ग पिसीज का वर्गीकरण

  1. वर्ग कॉन्ड्रीइक्थीज़
  2. वर्ग ऑस्टिक्थीज
  3. वर्ग प्लैकोडर्मी

(1) वर्ग कॉन्ड्रीइक्थीज़

इस वर्ग के सदस्य निम्नलिखित विशेषताएँ दर्शाते है|

  • इनमे अन्त कंकाल उपस्थित होता है एवं प्लेकॉइड शल्क पाए जाते है|
  • इनमे वायु आशय व फुफ्फुस अनुपस्थित होते है, जबकि स्पाइरेकल पाए जाते है|
  • इस वर्ग की मछलियों के सिर के पृष्ठ भाग पर एम्पुला ऑफ लोरेजिनी तापग्राही संवेदी अंग पाए जाते है|
  • इनमे नर प्राणी में क्लेसपर मैथुनी अंग के रूप में पाए जाते है| यह श्रेणी पंखो के भीतरी किनारों द्वारा उद्गभित होते है|
  • कॉन्ड्रीइक्थीज़ वर्ग के सदस्यों का ह्दय द्विकोष्ठीय होता है| इनमें एक अलिन्द व एक निलय पाया जाता है| इसके ह्दय में एक बड़ा शिरा कोटर व कोनस आर्टिरियोसस पाया जाता है|
  • अधिकाँश सदस्य अण्डज या अण्डजरायुज होते है| शार्क मछली जरायुज प्राणी है|
  • टॉरपीडो, स्कॉलियोडॉन, काइमेरा, स्टिगोस्टीमा, आदि कॉन्ड्रीइक्थीज़ के सदस्य है|

(2) वर्ग ऑस्टिक्थीज

इस वर्ग के सामान्य लक्षण निम्नलिखित है|

  • ये सभी प्रकार के स्वच्छ, खारे, गर्म या ठण्डे जल में रहते है|
  • शरीर तर्कु आकार तथा धारा रेखित होता है|
  • अन्त कंकाल मुख्यतया अस्थि का बना होता है|
  • बाह्य कंकाल गैनॉइडशल्को, टीनॉइड तथा चक्राभ शल्को का बना होता है|
  • चार जोड़ी क्लोम दरारें अपरकुलम से ढकी रहती है|
  • वायु आशय द्रव्य स्थेतिक बनाने में सहायक होते है|
  • प्लेकॉयड शल्क अनुपस्थित होते है|
  • पाशर्व रेखा तन्त्र सुविकसित तथा पृथक लिंगी होते है|
  • हिप्पोकैम्पस, फुफ्फ्स मछलियाँ, एक्सोसीट्स, कैट फिश एवं ऐनाबस कॉन्ड्रीइक्थीज़ वर्ग के सदस्य है|

(3) वर्ग प्लैकोडर्मी

  • इस वर्ग के प्राणियों के शरीर पर अस्थिल प्लेटों का कवज होता है|
  • ये प्रथम अलवणीय मछलियाँ होती है|
  • ये प्लैकोडर्मी मछलियाँ विलिप्त हो चुकी है| क्योंकि ये मछलियाँ डेवोनियन से पर्मियन युग में पायी जाती थी|

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वर्ग उभयचर (Amphibia)

उभयचर वर्ग के सामान्य लक्षण निम्नलिखित है|

  • उभयचर उल्ब रहित होते है| ये शीत रुधिर तापी जन्तु होते है|
  • इनमे दो जोड़ी पंचागुली पाद पाए जाते है| अग्रपाद में चार व पश्चपाद में पाँच अंगुलियाँ पाई जाती है| अपोड़ा में पाद अनुपस्थित होते है|
  • त्वचा में रंग बदलने की क्षमता पाई जाती है, जिसे मेटाक्रोसिस कहते है| त्वचा के नीचे लसिका स्थान पाए जाने के कारण त्वचा ढीली-ढाली होती है|
  • इनकी त्वचा चिकनी खुरदरी तथा ग्रन्थियों युक्त होती है| ग्रन्थियों त्वचा को नम रखती है| त्वचा पर घड़े के आकार की श्लेष्म ग्रन्थियाँ पायी जाती है|
  • यकृत एवं वृक्क निवाहिका तंत्र अनुपस्थिति होते है| उभयचरों की लाल रुधिर कणिकाएँ केन्द्रक युक्त होती है|
  • वृक्क मीसोनेफ्रिक टाइप एवं उत्सर्जी पदार्थ यूरिया होता है|
  • उभयचरों के श्वसन अंग फेफड़े, मुखग्रसनी गुहिका, त्वचा तथा क्लोम होते है|
  • इनका ह्दय त्रिकोष्ठीय होता है तथा ट्रंकस आरटीरियोसस पूर्ण विकसित होता है|
  • करोटि में दो अनुकपाल अस्थिकन्द पाए जाते है|
  • इन असमतापी जन्तुओं में 10 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएँ पाई जाती है| पाशर्व रेखा तंत्र का अभाव होता है|
  • बाह्य कर्ण का अभाव, जबकि मध्यकर्ण में कर्णास्थि उपस्थित होती है|
  • अधिकाँश सदस्य अण्डज होते है तथा निषेचन जल में सम्पन्न होता है|
  • इनमे लार्वा अवस्था टैडपोल पाई जाती है, जिसमे क्लोम उपस्थित होते है|
  • कुछ उभयचरों में पैतृक रक्षण का गुण पाया जाता है|
  • एम्फियूमा, राना टिग्रीना आदि उभयचर वर्ग के महत्वपूर्ण सदस्य है|

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वर्ग सरीसृप (Reptilia)

सरीसृपों के अध्ययन को हर्पेटोलॉजी कहा जाता है| सरीसृपों का स्वर्ण युग मीसोजोइक महाकल्प को कहा जाता है| जबकि इसके सामान्य लक्षण निम्न है|

  • इन वास्तविक स्थलीय जन्तुओं की त्वचा शुण्क श्रंगी एवं शल्कयुक्त होती है|
  • सरीसृप रेंगने वाले तथा बिल में रहने वाले, शीत रुधिरतापी जन्तु है, जिन पर उपचर्मीय शल्क पाए जाते है| इनमे श्वसन सदैव फेफड़ो के द्वारा होता है|
  • इनकी करोटिमोनोकोंडाइलर होती है|
  • गर्भ झिल्ली उपस्थित होती है| उल्ब अपरापोषिया तथा जरायु भ्रूण झिल्ली है|
  • सरीसृपों में 12 जोड़ी कपाल तंत्रिकाएँ पाई जाती है लेकिन सर्पो में ये 10 जोड़ी होती है|
  • सरीसृपों में पाया जाने वाला जैकब्सन का अंग घ्राण संवेदी होता है|
  • जीवन चक्र में डिम्भक प्रावस्था नही पाई जाती है|
  • सर्पो तथा मगर में मूत्राशय नही पाया जाता है|
  • RBC उभयत्तल होती है|
  • वृक्क निवाहिका उपतंत्र अल्पविकसित होता है|

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