भ्रूण विज्ञान परिभाषा एवं अपरा के प्रकार

जी आज हम इस लेख में भ्रूण विज्ञान क्या है तथा भ्रूण विज्ञान से सम्बन्धित प्रमुख खोजें तथा अपरा और अपरा के प्रकारों का वर्गीकरण करेंगे|

भ्रूण विज्ञान परिभाषा

युग्मज (Zygote) से भ्रूण के विकास के अध्ययन को भ्रौणिकी या भ्रूण विज्ञान कहते है

एक प्राणी विशेष के परिवर्धन को व्यक्तिवृत्तीय परिवर्धन कहते है| किसी जाति या वर्ग विशेष के विकास के अध्ययन को जातिवृत्तीय परिवर्धन कहते है| लैंगिक जनन में दो प्रकार की जनन कोशिकाओं के संयोग से बने भ्रूण के विकास को एम्ब्रियोजेनेसिस कहते है|

अंगविकास भ्रूणीय परिवर्धन की अन्तिम अवस्था है, जिसके अन्तर्गत जनन परत में कोशिका समूहों का विशिष्टीकरण एवं विभेदीकरण होता है|

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भ्रूण विज्ञान से सम्बन्धित प्रमुख खोजें (Major Discoveries Related to Embryology)

  • अरस्तू भ्रूण विज्ञान से पितामह है|
  • मैल्पीघी, ल्यूवेनहॉक (Leeuwenhoek 1677) ने प्रीफॉर्मेशन सिद्धांत का प्रतिपादन किया| इसके अनुसार, युग्मको में पूर्व, निर्मित सम्पूर्ण जन्तु का सूक्ष्म रूप रहता है, इसे होमीन्कलस कहते है| परिवर्धन के अन्तर्गत यह परिमाण में बड़ा हो जाता है|
  • अर्नस्ट हैकल ने बायोजिनेटिक नियम या पुनरावृत्ति का सिद्धांत प्रतिपादित किया|
  • अगस्त बीजमान ने जर्मप्लाज्म का सिद्धांतप्रतिपादित किया|
  • फ्रेड्रिक वॉल्फ ने एपीजिनेटिक सिद्धांत प्रतिपादित किया|
  • विल्हेल्म रॉक्स ने मोजैक सिद्धांत प्रतिपादित किया|
  • हेन्स ड्रीश ने रेगुलेटिव सिद्धांत प्रतिपादित किया|
  • स्पीमान तथा मेनगोल्ड ने आर्गेनाइजर की अवधारणा प्रस्तुत की|

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अपरा (Placenta) क्या है?

विलियम हार्वे (सन् 1657) द्वारा अपरा को सर्वप्रथम परिभाषित किया गया, कशेरुकियों में गर्भावधि के समय भ्रूण की सुरक्षा, पोषण, उत्सर्जन, आदि कार्यिकी क्रियाएँ, अतिरिक्त भ्रूणीय कलाएँ या झिल्लियाँ तथा इन झिल्लियाँ से निर्मित संरचनाओ द्वारा सम्पन्न किए जाते है| स्तनधारियों में अपरा इन भ्रूणीय कलाओं से निर्मित संरचना है, जो गर्भाशय में भ्रूण के आरोपण के समय विकसित होता है|

भ्रूण तथा गर्भाशय भित्ति के मध्य वह अस्थायी संयोजी अंग केवल गर्भावधि के समय ही विकसित होता है| यह अस्थायी संयोजी अंग गर्भावधि के दौरान महत्वपूर्ण कार्यिकी क्रियाएँ; जैसे -विसरण द्वारा भ्रूण को पोषण प्रदान करा, गैसों का विनिमय आदि क्रियाओं द्वारा माँ तथा भ्रूण के मध्य एक अटूट सम्बन्ध दर्शाता है| अतः अपरा वह संरचना है, जिसके द्वारा जरायुज स्तनधारियों का विकासशील भ्रूण या गर्भ अपना पोषण मातृक गर्भाशयी रुधिर से प्राप्त करता है|

अपरा के प्रकार (types of placenta)

जरायुज प्राणियों के इस अभिलक्षण का वर्गीकरण इसकी संरचना रोपण एवं घनिष्ठता के आधार पर किया जाता है|

(1) भ्रूण बाह्यकला के योगदान, प्रकृति या उद्गम के आधार पर

अपरा पीतक कोष या विटैलाइन जैसे-मेटाथीरिया या मार्सुपिएल्स, अपरापोषिकीय; जैसे-उच्च स्तनधारी तथा जरायु प्रकार के होते है, जो जरायु से विकसित होता है| इसमें अपरापोवित्र अत्यन्त छोटा होता है|

(2) अपरा, रसांकुरों या विलाई के आकार एवं वितरण के आधार पर

अपरा अपाती; जैसे -सुअर, घोड़ा, लेमुर में विसरित, बकरी भेड़, गाय, हिरन में दलीय तथा ऊँट, जिराफ में मध्यवर्ती पाती; जैसे- बिल्ली, कुत्ता, हाथी में वलय चमगादड़, शशक, भालू में बिंबाभ मनुष्य, बन्दर, कपि में पश्यक्राभ तथा कोंट्रा डेसिडुअस; जैसे- बडीकूट, मोल में होते है|

(3) औतिकी के आधार पर (onthe basis of histology)

माता तथा विकसित होते हुए भ्रूण के ऊतक के सम्बन्ध के आधार पर अपरा अग्र प्रकार के होते है|

उपकला जरायु; जैसे-सुअर, लेमूर में, जरायुयोजी; जैसे -पशु, भेड़ में, अन्त:स्तर जरायु; जैसे -माँसाहारी स्तनी में, रुधिर जरायु; जैसे-मनुष्य, कपि, बन्दर में तथा रुधिरान्त स्तरी; जैसे- चूहाँ, शशक में|

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अपरा के कार्य (Functions of placenta)

  • भ्रूण के पोषण में सहायता करता है|
  • भ्रूण के श्वसन में सहायता करता है|
  • भ्रूण के उत्सर्जन में सहायता करता है|
  • कुछ विषैले रसायनों जैसे हिस्टामिन, आदि के लिए प्रभावी अवरोधक की तरह कार्य करता है|
  • अपरा भ्रूण के विकास हेतु महत्वपूर्ण हार्मोन; जैसे-प्रोजेस्टेरॉन, एस्ट्रोजन, गोनेडोट्रापिक हार्मोन आदि का स्रावण करके अन्त:स्रावी अंग की भाँती कार्य करता है|

गर्भकाल (gestation period)

गर्भकाल निषेचन व प्रसव के बीच का समय है| यह माँ के गर्भाशय में भ्रूण द्वारा व्यतीत की गयी औसत समयावधि है| मानव में गर्भावधि का समय लगभग 37-38 सप्ताह होता है अर्थात् मनुष्य का गर्भकाल 9 माह का होता है तथा सामान्यतया एक बार में एक शिशु का जन्म होता है|

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