प्राकृतिक आपदाएं कौन-कौन सी है?

दोस्तों आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम भारत में प्राकृतिक आपदाएं और संकट किन कारणों से आता है इससे सम्बंधित पूरी जानकारी पढ़ेंगे|

Table of Contents

प्राकृतिक आपदाएं कौन-कौन सी है?

भारत में प्राकृतिक आपदाएं भूकंप, भू-स्खलन, चक्रवाती तूफान, बाढ़ तथा सूखा, मौसम संबंधी त्रासदियाँ, मानवकृत त्रासदियाँ, उत्पीड़क संकट तथा स्थलाकृति आदि के कारण आते है|

प्राकृतिक आपदाएं और संकटो को मुख्यतः निम्नलिखित वर्गो में बाँटा जा सकता है|

स्थलाकृति और विवर्तनिकी (प्लेट टैक्टोनिक्स) संकट :-

भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी (समुद्रतल पर ज्वालामुखी अथवा विवर्तननिक पट्टियों की हलचल द्वारा उत्पन्न शक्तिशाली विनाशकारी ऊँची समुद्री लहरें), भूस्खलन तथा हिमधाव से उत्पन्न त्रासदियाँ|

मौसम संबन्धी त्रासदियाँ व संकट :

चक्रवात, तूफान, बवंडर, बाढ़ तथा सूखे के कारण पैदा होने वाली विपत्तियाँ|

उत्पीड़क संकट :

महामारी के रूप में फैलने वाले मानव रोग, जीव-जन्तुओं एवं वनस्पतियों के रोग एवं संक्रमण द्वारा उत्पन्न घातक परिणाम| फसलों पर टिड्डी दल का आक्रमण भी एक प्रकार का उत्पीड़क है जो कुछ ही दिनों में किसी बहुत बड़े भू-क्षेत्र अथवा प्रान्त की फसलों को चट करके नष्ट कर देता है|

मानवकृत त्रासदियाँ और संकट :

इस परमाणु युग का मानव स्वयं और संपूर्ण मानव जाति के लिए भी एक खतरा बना हुआ है| युद्ध बड़े पैमाने पर औधोगिक प्रदुषण और दुर्घटनाऐ तथा परमाणु बम ऐसी महाविपत्तियो के कारण है जो हजारों जीव-जातियों और महत्वपूर्ण कीमती निर्माण का कुछ ही समय में विध्वंस करके पूरी दुनियाँ पर संकट के घोर बादलों की छाया कर सकता है|

प्रमुख समुद्री जल धाराएं

भूकंप के कारण प्राकृतिक आपदाएं

प्रायः भूकंप ज्वालामुखी पर्वतों में विस्फोट अथवा भूपर्पटी के बड़े तनावों के कारण विवर्तनिक हलचलों द्वारा उत्पन्न होते है| जलाशयों में जल के बहुत अधिक मात्रा में इकट्ठा होने के कारण से खानों के धसने अथवा चट्टानों के फटने के कारणों से भी भूकंप होता है|

भूकंप के परिणाम और तीव्रता के आधार पर भारत भूमि को मुख्यतः पाँच भूकंपीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है|

  1. खतरा विहीन
  2. कम खतरा
  3. मध्यम खतरा
  4. अधिक खतरा
  5. अत्याधिक खतरे का क्षेत्र

हिमालय का पर्वत खण्ड, उत्तर-पूर्व के राज्य, कच्छ प्रायद्वीप, रत्नागिरी के समीप का पश्चिमी तटीय क्षेत्र तथा अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, भारत के अत्याधिक भूकंपीय खतरे वाले क्षेत्र है| गंगा का मैदान और पश्चिमी राजस्थान के क्षेत्र में भी भूकंप का अधिक खतरा रहता है|

भूस्खलन के कारण आपदाएं (भूस्खलन किसे कहते है?)

आवरण प्रस्तर अथवा आधार शैलों के अचानक भारी मात्रा ,ए तेजी से खिसकने को भू-स्खलन कहते है| हिमालय का पर्वतीय खण्ड, पश्चिमी घाट में नदियों और घाटियों के साथ-साथ के पहाड़ी क्षेत्र तथा उत्तर-पूर्व की पहाड़ियों प्रायः भूस्खलन से प्रभावित क्षेत्र है|

पहाड़ियाँ के बड़े पैमाने पर वृक्षों के काटने, मृदाक्षरण अथवा मृदासर्पण, भारी वर्षा अथवा हिमपात प्रायः भूस्खलन के कारण है| कई बार भूकंपीय झटकों या अचानक शैल विस्थापन से भी भूस्खलन होता है और चट्टानों टूट कर गिरने लगती है|

कई बार भूस्खलन से उत्पन्न मलवा इत्यादि पर्वतीय नदियों के मार्गो को अवरूध्द करके उनके सामान्य मार्ग को बदल देता है| भूस्खलन द्वारा बड़ी-बड़ी चट्टानों के टूट कर गिरने, लुढकने, मलबे से भरी धाराओं के बहने आदि से वहाँ के निवासियों को भयंकर स्थितियों का सामना करना पड़ता है|

पृथ्वी का स्वरूप

चक्रवाती तूफान के कारण प्राकृतिक आपदाएं (चक्रवाती तूफान किसे कहते है?)

चक्रवाती तूफान हवाओं के अति शक्तिशाली भंवर के समान होते है| इनके केंद्र में एक कम दबाव का क्षेत्र होता है, जिसके चारों ओर क्रमशः बढ़ते हुए दबाव क्षेत्र होते है जिनसे हवाएं तेजी से घूर्णन करती हुई केन्द्र की ओर बढती है इस प्रकार एक भंवर सा उत्पन्न करती है|

100-200 कि.मी./घंटा की गति से शुरू होने वाले चक्रवाती तूफान की हवाओं की गति 600-1000 कि.मी./घंटा या अधिक भी बढ़ सकती है| इस प्रकार के भयंकर तूफान अपने मार्ग में आने वाली हर चीज-पेड़, इमारते, यातायात आदि के लिए विनाशकारी होते है|

अमेरिका में इन्हें हरिकेन कहते है, जिन्हें पहचान के लिए भिन्न-भिन्न नाम दिये गये है, जैसे कैटरीना और रीटा| दक्षिण-पूर्व एशिया में इन्हें प्रायः टाइफून के नाम से भी जाना जाता है|

भारतीय प्रायद्वीप में आने वाले अधिकांश चक्रवात अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होते है जिन्हें उष्ण -कटिबन्धीय चक्रवात भी कहते है| इनके कारण तेज बारिश व ऊँची ज्वार की लहरें उत्पन्न होती है जिनके कारण तटवर्ती क्षेत्र काफी बड़े पैमाने पर बाढ़ग्रस्त हो जाते है,

बंगाल की खाड़ी में उत्पन्न होने वाले बहुत से उष्ण-कटिबन्धीय चक्रवात पूर्वी तटो से पश्चिमी दिशा में आगे की ओर बढ़ते है और फिर कुछ कमजोर होकर उत्तर की ओर मुड़ जाते है| कुछ चक्रवात अपने पथ पर 2 से 6 दिनों तक सैकडो कि.मी. का मार्ग तय करते हुए अपने रास्ते में विध्वंस करते हुए आगे बढ़ते है, प्रायः ये हिमालय की निचली पहाड़ियों तक पहुँचने से पहले ही अपनी ऊर्जा समाप्त कर चुके होते है|

पृथ्वी की बनावट

बाढ़ के कारण प्राकृतिक आपदाएं

बाढ़ के कारण प्राकृतिक आपदाएं -बांग्लादेश के बाद भारत विश्व का दूसरा सबसे ज्यादा बाढ़ ग्रस्त देश है| भारी और लम्बे समय तक लगातार वर्षा पर्वतों पर अधिक बर्फ के पिघलने, बांधो के टूटने, भूस्खलन तथा नदी तल पर अतिरिक्त मिट्टी व रेत के जमाव के कारण प्रायः बाढ़ आती है|

हमारे देश में उत्तर प्रदेश, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में गंगा का अपवाह क्षेत्र, असम में ब्रह्मापुत्र नदी का अपवाह क्षेत्र तथा ओडिशा में बैतरणी, ब्राहामी तथा स्वर्णरेखा नदियों के अपवाह क्षेत्र में अधिक बाढ़ आती है|

आंध्र प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा तथा गुजरात के कुछ भाग भी प्रायः बाढ़ ग्रस्त हो जाते है| नगरों कस्बों व अन्य क्षेत्रों में पहाड़ो की ढलानों पर अंधाधुंध वृक्षों को काटना, सड़कों पुलों तथा अन्य बड़ी संरचनाओ का अनियमित व अवैज्ञानिक रूप से बना होना तथा औधोगिक क्षेत्रों का अनियंत्रित विस्तार बाढ़ के कारण होने वाली जान-माल की हानि को बहुत बढ़ा देते है| बाढ़ के मार्ग में बनी झुग्गी-झोंपड़ियो की बस्तियों व इन स्थानों पर बसी अधिक आबादी के कारण बाढ़ का संकट उग्र रूप ले लेता है और हर वर्ष हजारों जाने चली जाती है|

सूखा के कारण प्राकृतिक आपदाएं

  1. मौसम सम्बन्धी सूखा -मुख्यतः मानसून की विफलता से जब वर्षा अपने सामान्य वार्षिक अनुमान से 25%कम हो
  2. जल विज्ञान सम्बन्धी सूखा-भूमिगत जल स्तर बहुत गिर जाता है|
  3. कृषि सम्बंधित सूखा-जब मृदाश्रित जल की मात्रा किन्ही पौधों या फसलों के उगने के लिए अपर्याप्त होती है|
  4. पर्यावरण सम्बंधित सूखा-जब किसी क्षेत्र की कुल मिला कर वनस्पति, जीव जन्तुओं का पोषण करने में तथा भरण पोषण की पैदावार में भारी कमी हो जाती है|सूखे के कारण अकाल, जल काल, तिनकाल अर्थात त्रिकाल की अवस्था आ जाती है| इस दिशा में अनेकों पेड़-वनस्पति सूख जाते है, लाखो की तादाद में जीव-जन्तु भूखे प्यासे मर जाते है तथा क्षेत्र वासी पलायन कर जाते है| भारत का थार गर्म मरुस्थल अत्यन्त सूखा ग्रसित क्षेत्र है इसके विपरीत उत्तर का मैदान क्षेत्र सूखा विहीन है|

सुनामी क्या है

आपदा प्रबंधन कैसे करे?

प्राकृतिक आपदाओं द्वारा प्रभावित लोगों के लिए तुरंत प्रभावी तथा दीर्घकालीन संकट निवारण, चिकित्सीय, पुनर्वास व पुननिर्माण सुविधाओं की आवश्यकता होती है जिसे आपदा प्रबन्धन एजेंसियों को तैयार रखना चाहिए|

पिछले एक सौ वर्षो से अधिक समय की मौसम की जानकारी को कम्यूट्रीकृत करके इन आपदाओं की सम्भावना होने पर सूचित करना, कृत्रिम उपग्रह की सहायता से सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग के भौगोलिक सूचना तंत्र (G.I.S.) द्वारा दूरस्थ, दुर्गम व प्रभावित क्षेत्र में पूर्ण सूचनाओं और अनुदेशों को पहुँचाना महत्वपूर्ण है|

बढ़िया अभियांत्रिकी द्वारा कमजोर संरचनाओ को मजबूत करना तथा निर्माण करना भी आवश्यक है| इस प्रकार किसी आपदा के समय संकट उत्पन्न होने पर लोगों को तुरंत चेतावनी दे कर उन्हें बचाव के तरीकों से अवगत कराना, तुरंत सहायता पहुँचाना व उन्हें भय मुक्त करना आपदा प्रबंधन के प्रभावी कदम है|

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