दोस्तों देश में विगत कुछ वर्षो से अधिकाधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुंध व अनियंत्रित प्रयोग किया जाता रहा है जिसके कारण मृदा स्वास्थ्य एवं मृदा में उपलब्ध लाभदायक जीवाणुओं की संख्या में भारी कमी हुई है|
फसल मृदा की उत्पादन शक्ति क्षीण हुई है| अतएव मृदा क स्वस्थ्य बनाये रखने, लक्षित उत्पादन प्राप्त करने के लिए, उत्पादन लागत कम करने हेतु व पर्यावरण एवं स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से यह आवश्यक है, कि रासायनिक उर्वरकों जैसी कीमती निवेश के प्रयोग को एक हद तक कम करके जैविक खाद के प्रयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए|
जैविक खाद का तात्पर्य रासायनिक रूप से कार्बनिक पदार्थो से है, जो सड़ने गलने पर जीवांश पैदा करती है| इनमे वे सभी पोषक तत्व मौजूद रहते है जो कि पौधों की वृद्धि में सहायक होते है तथा मृदा को वे सभी तत्व पुनः मिल जाते है जो कि फसल अपनी बढवार के समय उससे लेते है|
प्राकृतिक खाद या जैविक खाद और हरी खाद के इस्तेमाल से भूमि की संरचना में सुधार आयेगा और साथ ही रासायनिक उर्वरकों के दुष्प्रभावों से बचा जा सकेगा| समन्वित पोषण आपूर्ति प्रणाली अपनाने के लिए यह जरूरी है कि जैविक खादों व अन्य उर्वरकों का संतुलित मात्रा में उचित समावेश किया जावे|
Table of Contents
- जैविक खाद (Organic Manures)
जैविक खाद (Organic Manures)
जैविक खाद उस खाद को कहते है, जिसमें जीवों का अंश हो, ऐसी खाद को प्राकृतिक या कार्बनिक या जैविक खाद भी कहते है| जैविक खाद में मुख्यतः गोबर की खाद, हरी खाद, कम्पोस्ट, खली की खाद, वर्मी कम्पोस्ट, नाडेप की खाद, इसके अलावा हड्डी की खाद, पोल्ट्रीखाद, मछली की खाद, मानव विष्टा की खाद आदि आती है|
जैविक खादों का वर्गीकरण (Classification of Organic Manures)
जैविक/ कार्बनिक खादों को निम्न प्रकार से वर्गीकृत किया जाता है|
(1) स्थूल जैविक/कार्बनिक खादें (Bulky Organic Manures)
इनमे पोषक तत्वों की मात्रा कम होने के कारण इनका प्रयोग अधिक मात्रा में करना पड़ता है| जैसे- गोबर की खाद, कम्पोस्ट, मलमूत्र की खाद, सीरे की खाद प्रेसमड आदि|
(2) सान्द्रित जैविक/कार्बनिक खाद (Consentrated Organic Manures)
इनमें स्थूल या भारी कार्बनिक खादों की अपेक्षा पोषक तत्वों की प्रतिशत मात्रा अधिक होती है| अतः अपेक्षाकृत इनकी कम मात्रा प्रयोग की जाती है| जैसे खलियाँ (Cakes)|
(3) प्राणिजात खादें (Manures of animal origin)
जैसे सुखाया हुआ खून, ऊन, हड्डी की खाद, मछली की खाद|
जैविक खादों का मृदा में महत्व एवं प्रभाव
जैविक खादें जैसे गोबर की खाद, हरी खाद, कम्पोस्ट खाद तथा वर्मी कम्पोस्ट आदि मृदा उर्वरता बनाये रखने, उत्पादन का स्तर रखने एवं पौषक तत्वों का सही परिमाण प्राप्त करने के लिए आवश्यक है|
जैविक खाद का प्रभाव केवल एक फसल तक ही सीमित नहीं रहता बल्कि उनका प्रभाव 2-3 वर्षो तक मृदा में रहता है| जैविक खाद के उपयोग से मृदा में जैविक कार्बन में भी सुधार आता है| पौधों को अपना जीवन पूर्ण करने के लिए 20 पोषक तत्वों की आवश्यकता होती है, जो केवल उर्वरकों के प्रयोग से पूर्ण नही की जा सकती है|
आवश्यक मात्रा में जैविक खाद के प्रयोग से प्रमुख तत्वों के साथ-साथ गौण व सूक्ष्म पोषण तत्वों की पूर्ति भी आसानी से हो जाती है|
जैविक खाद की उपयोग से मृदा की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक तीनों ही अवस्थाओं में सुधार होता है, इन खादों की उपयोगिता निम्नलिखित है|
(1) मृदा में भौतिक गुणों पर प्रभाव
- रेतीली हल्की मृदा सघन तथा दानेदार संरचना हो जाती है व भारी भूमि हल्की तथा भुरभुरी हो जाती है, परिणामतः भूमि की संरचना में सुधार होता है|
- मृदा की जलधारण क्षमता में वृद्धि होती है|
- मृदा में वायु संचार में वृद्धि होती है|
- पानी व वायु द्वारा मृदा अपरदन कम हो जाता है, जिससे मृदा संरक्षण होता है|
- मृदा ताप नियन्त्रण में रहता है|
- पौधों की जड़ो का विकास अच्छा होता है|
- भूमि में जल अंत:स्पदन अच्छा हो जाता है|
(2) मृदा के रासायनिक गुणों पर प्रभाव
- पौधों को सभी आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति के साथ-साथ हार्मोन्स व एंटीबायोटिक्स की भी प्राप्ति होती है जो विशेष लाभकारी होते है|
- क्षारीय मृदा का P.H. मान कम हो जाता है|
- मृदा की क्षारीयता तथा लवणीयता में सुधार होता है|
- मृदा में कार्बन की मात्रा बढ़ जाती है|
- मृदा में पाये जाने वाले विषैले पदार्थो का प्रभाव कम हो जाता है|
- जैविक खाद के उपयोग व अपघटन से मृदा में स्थिर तत्व विलेयशील होकर पौधों को आसानी से उपलब्ध होते है|
- मृदा की उभय प्रतिरोध क्षमता तथा धनायन विनिमय क्षमता में वृद्धि होती है|
(3) मृदा के जैविक गुणों पर प्रभाव
- मृदा में लाभकारी जीवाणुओं की संख्या में वृद्धि होती है|
- जीवाणुओं की क्रियाशीलता में वृद्धि होने के कारण पौधों को पोषक तत्व आसानी से प्राप्त होते रहते है|
- जैविक खादें मृदा में सूक्ष्म जीवों के लिए भोजन व ऊर्जा प्रदान करती है जिससे सूक्ष्म जीवों द्वारा मृदा में होने वाली नाइट्रीकरण, अमोनीकरण तथा नाइट्रोजन स्थिरीकरण की क्रिया बढ़ जाती है|
- मृदा में वायुमंडल से नाइट्रोजन का स्थिरीकरण तीव्र गति से होने लगता है|
- जीवाणु जटिल पदार्थो को विच्छेदित कर आयनिक रूप में पौधों को उपलब्ध कराते है|
(4) जैविक खाद एवं उर्वरकों में भेद (Difference between organic manures and fertillizers)
जैविक/कार्बनिक खाद ( organic manures)
- ये पेड़ पौधों तथा जन्तुओं के भागों तथा अवशेष पदार्थो को सड़ाकर बनाये जाते है|
- पौधों के सभी आवश्यक तत्व उपस्थित रहते है, परन्तु पोषक तत्वों की मात्रा सघन नही होती है|
- पौधों को पोषक तत्वों की प्राप्यता धीरे-धीरे होती रहती है| इनका प्रभाव प्रायः 1-2 वर्ष तक मृदा में बना रहता है|
- इन खादों को फसल की बुवाई से काफी पहले प्रयोग करना पड़ता है, क्योंकि इनके प्रयोग करने के काफी समय पश्चात्, जब ये सड़ जाते है तब पौधों को प्राप्त होते है|
- इनसे मृदा-जल धारण क्षमता बढ़ जाती है|
- इनके प्रयोग से मृदा का वायु संचार सुधरता है|
- सभी आवश्यक तत्व प्राप्त होने के कारण पौधों की संतुलित वृद्धि होती है|
- इसके प्रयोग से कार्बन नाइट्रोजन अनुपात मृदा में संतुलित रहता है|
- मृदा ताप पर अच्छा प्रभाव पड़ता है|
- इनके प्रयोग से मृदा में कार्बनिक पदार्थ की मात्रा बढ़ जाने से उसके अपरदन में कमी हो जाती है|
- अत्यधिक मात्रा में भी प्रयोग करने से मृदा पर हानिकारक प्रभाव नही पड़ता है|
- खादों के प्रयोग से मृदा में उपस्थित अविलेय तत्व विलेय रूप में परिवर्तित हो जाते है, क्योंकि कार्बनिक पदार्थो के सड़ने से कार्बनिक अम्ल बनते है|
- इनके प्रयोग से फसलों की जल माँग घटती है|
- इनके प्रयोग से मृदा की प्रत्यारोधन क्षमता बढ़ जाती है|
उर्वरक (fertillizers)
- ये अनेक रासायनिक क्रियाओं द्वारा तत्वों अथवा खनिज पदार्थो से कारखानों में तैयार क जाती है|
- पोषक तत्वों की मात्रा काफी सघन होती है, परन्तु इनमें एक या दो आवश्यक तत्व मिलते है|
- इनके पोषक तत्व पौधों को लगभग एक सप्ताह में ही प्राप्त होने लगते है और इनका अवशेष प्रभाव मृदा में अधिक समय तक नही रह पाता है|
- सभी तत्व विलेय अवस्था में तथा शीघ्र पौधों को उपलब्ध होते है| अतः इनका प्रयोग फसल की बुवाई के समय अथवा खड़ी फसल में किया जाता है|
- इनके प्रयोग से मृदा जल धारण क्षमता नही बढ़ती है|
- उर्वरकों का मृदा वायु संचार पर कोई प्रभाव नही पड़ता है|
- इनके प्रयोग से पौधों की संतुलित वृद्धि नहीं होती है क्योंकि उर्वरकों से सभी तत्व पौधों को प्राप्त नही होते है|
- यह अनुपात संतुलित नही रहता है|
- मृदा ताप पर प्रभाव नही पड़ता है|
- मृदा अपरदन पर कोई प्रभाव नही पड़ता है|
- अधिक मात्रा में प्रयोग करने से फसल एवं मृदा दोनों पर ही हानिकारक प्रभाव पड़ता है|
- इनमें ऐसा सम्भव नही है|
- फसलों की जल माँग बढती है|
- उर्वरकों के प्रयोग से मृदा की प्रत्यारोधन क्षमता पर कोई प्रभाव नही पड़ता है|
गोबर खाद क्या है? (गोबर की खाद (farm yard manures))
गोबर की खाद का प्रयोग हमारे देश में प्राचीन काल से हो रहा है| गोबर की खाद से तात्पर्य ऐसी खाद से है जिसमें घरेलू पशुओं (गाय, भैंस, बैल, भेड़, बकरी, ऊँट आदि) के ठोस तथा द्रव मल-मूत्र से युक्त बिछावन (पुआल, भूसा, चारा, पेड़- पौधों की पत्तियों आदि) को गड्डो में सड़ाकर तैयार किया जाता है|
गोबर की खाद के मुख्य घटक क्या है?
गोबर की खाद के तीन मुख्य घटक (अवयव) गोबर, मूत्र तथा बिछावन है|
(1) गोबर
पशुओं के मल (गोबर) के ठोस पदार्थ में कई अघुलनशील व बिना पचे पदार्थ होते है| इसके अतरिक्त 0.3-0.7%नाइट्रोजन, 0.1-0.5% फॉस्फोरस व 0.3-0.5% पोटेशियम तथा कुछ गौण व सूक्ष्म पोषक तत्व होते है|
(2) मूत्र
मूत्र का मुख्य अवयक यूरिया है, यह 2% होता है इसके अतिरिक्त मूत्र में अनेक रासायनिक पदार्थ घुलनशील अवस्था में होते है| मूत्र में नाइट्रोजन 0.4-1.35% फॉस्फोरस 0.05-0.10% व पोटेशियम 0.5-2.0% होता है|
(3) बिछावन
पशुओं के मूत्र को शोषित करने के लिए बिछावन का प्रयोग करते है, बिछावन में पौधे के लिए आवश्यक पोषक तत्व भी पाये जाते है| बिछावन से खाद के ढेर में वायु का संचार अच्छा होता है जिससे जीवाणुओं की क्रियाशीलता बढ़ती है व खाद सड़ने में मदद मिलती है|
गोबर की खाद में पोषक तत्व
गोबर की खाद में सभी आवश्यक पोषक तत्व जैसे नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटेशियम, केल्शियम, मैग्नीशियम, गन्धक, लोहा, ताँबा, जस्ता तथा मैगनीज आदि आये जाते है|
गोबर की खाद में मुख्य तत्वों की मात्रा
गोबर की खाद में नाइट्रोजन 0.5-10%, फॉस्फोरस 0.25-0.5% एवं पोटेशियम 0.5-1.0% होता है| गोबर की खाद में उपस्थित तत्वों की मात्रा, पशुओं की किस्म, पशुओं की आयु, उनके भोजन, कार्य, बिछावन व खाद संग्रह करने की विधि पर निर्भर करती है|
गोबर की खाद बनाने की विधि
(1) वर्तमान प्रचलित विधि
हमारे देश में गोबर की खाद तैयार करने की वर्तमान प्रचलित विधि दोषपूर्ण है| इससे प्राप्त खाद में पोषक तत्वों की मात्रा कम होती है व खाद की गुणवत्ता निम्न स्तर की होती है|