ऋतुएँ कैसे बनती है?:How are the seasons formed?

दोस्तों आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम ऋतुएँ कैसे बनती है?, ऋतुएँ कितनी होती है?, पृथ्वी का मौसम परिवर्तन का कारण आदि की जानकारी प्राप्त करेंगे|

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ऋतुएँ कैसे बनती है?

ऋतुएँ कैसे बनती है? ऋतुएँ बनते का कारण पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य का एक बार परिक्रमण करती है, जबकि पृथ्वी पर पड़ने वाली सूर्य की किरणें एक प्रकार से झुकाव की तरह प्रभावित होती है| पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य का रक बार परिक्रमण में अक्ष का झुकाव सदा अपने समान्तर रहता है| इसमें एक गोलार्ध 6 माह तक एक तरफ सूर्य की और झुका रहता है इस प्रकार यह क्रिया लम्बे समय तक चलती है| इसके फलस्वरूप ऋतुएँ:- ग्रीष्म, वसंत आदि उत्पन्न होती रहती है|

ऋतुएँ कितनी होती है?

दोस्तों ऋतुएँ 6 प्रकार की होती है:- शरद, ग्रीष्म, वर्षा, वसंत, हेमंत और शीत ऋतुएँ उत्पन्न होती है|

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ऋतुएँ कैसे बनती तथा ऋतुएँ में कैसे परिवर्तन होता है पूरी जानकारी

पृथ्वी एक वर्ष में सूर्य का एक बार परिक्रमण करती है| इस परिक्रमण में अक्ष का झुकाव सदा अपने समान्तर रहता है| 21 मार्च को सूर्य विषुवत वृत्त पर लम्बवत चमकता है, 21 जून को 23.5% उत्तर में “कर्क वृत्त” पर सीधा चमकता है

23 सितम्बर को विषुवत वृत्त पर सूर्य की किरणें लम्बवत पडती है और 22 दिसम्बर को 23.5% दक्षिणी में “मकर वृत्त” पर चमकता है| इसका परिणाम यह होता है कि उत्तरी गोलार्द्ध में मार्च में वसन्त ऋतु होती है, जून में ग्रीष्म ऋतु, सितम्बर में शरद ऋतु और दिसम्बर में शीत ऋतु होती है|

दक्षिणी गोलार्द्ध में ऋतुएँ इसके विपरीत होती है ग्रीष्म ऋतु में दिन लम्बे होते है, राते छोटे; शीत ऋतु में दिन छोटे होते है और राते लम्बे होते है, राते छोटी; शीत ऋतुओं में दिन-रात बराबर होते है और मौमस सुहावना होता है|

दोपहर को सूर्य की किरणें लम्बवत पडती है परन्तु प्रातः और सायं ये किरणें तिरछी होती है| यही कारण है कि दोपहर को हमारी छाया होती है परन्तु सवेरे और सायं के समय बड़ी होती है|

इसी प्रकार ग्रीष्म ऋतु में सूर्य दोपहर के समय शीत ऋतु की अपेक्षा अधिक लम्बवत होता है, अत: ग्रीष्म ऋतु में साये छोटे होते है और शीत ऋतु में लम्बे होते है|

एक और बात ध्यान देने योग्य है| सूर्योदय के समय गर्मी हल्की होती है; ज्यों-ज्यों सूर्य आकाश में ऊपर उठता है, गर्मी बढती जाती है| दोपहर के समय सूर्य सबसे अधिक ऊँचाई पर aa चुकता है और फिर ढलने लगता है|

परन्तु गर्मी अभी घण्टा दो घण्टे बढती ही जाती है| कारण यह है कि सवेरे से दोपहर तक धूप की बहुत सी गर्मी पृथ्वी में एकत्रित हो चुकी होती है और दोपहर के पश्चात भी सूर्य अभी घण्टा दो घण्टे लगभग सीधा ही चमक रहा होता है जिससे पर्याप्त मात्रा में और अधिक गर्मी एकत्रित होती रहती है और गर्मी को और तेज कर देती है|

फिर सूर्य अधिक ढल जाता है तब धूप में बहुत कम गर्मी रह जाती है और भूमि में एकत्रित गर्मी भी विकिरण तथा हवा लगने के कारण बहुत कम रह जाती है| इससे सांयकाल को ठण्ड हो जाती है|

रात को भी आधी रात के पश्चात् आधी राट की अपेक्षा अधिक सर्दी हो जाती है| ठीक इसी प्रकार ऋतुओ के विषय में होता है|

हमारे यहाँ जून में सबसे अधिक गर्मी न होकर जुलाई का मास सबसे अधिक गर्म होता है और शीतकाल में दिसम्बर की अपेक्षा जनवरी में सर्दी अधिक पडती है|

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