पृथ्वी का उद्भव और विकास- Prithvi Ka Udbhav Evm Vikas

पृथ्वी का उद्भव और विकास:Prithvi Ka Udbhav Evm Vikas

दोस्तों पृथ्वी के उद्भव और इसके जैविक विकास की बड़ी विचित्र कहानी है| भारतीय वेद-पुराणों के अनुसार पृथ्वी तथा बह्राण्ड के अन्य पिण्डों की उत्पत्ति भगवान विष्णु ने की, तथा समस्त जैविक प्राणियों (जीव-जन्तु तथा वनस्पति आदि) की उत्पत्ति ब्रह्मा के विभिन्न अंगो से हुई|

इसी प्रकार की धारणाऐ कई अन्य धार्मिक ग्रन्थों में भी भिन्न-भिन्न प्रकार से व्यक्त की गई है| आज के इस वैज्ञानिक युग में विज्ञान ने बहुत महत्वपूर्ण उपलब्धियाँ प्राप्त की है| भूवैज्ञानिक पृथ्वी के ऊपर तथा इसके अन्दर की चट्टानों का विश्लेषण करके इसके उद्भव तथा संरचना के बारे में बहुत कुछ खोजबीन कर रहे है|

पृथ्वी के उद्भव तथा विकास की जानकारी प्राप्त करने में जैव-अवशेषों का बहुत महत्व है| फोसिल(जीवाश्म) पृथ्वी के अन्दर चट्टानों में अथवा अमुद्र की तह के नीचे दबे प्राचीन-कालीक जैव-अवशेषों को कहते है|

इन जीवाश्म का अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों को पेलिएन्टोलोजिस्ट कहते है| आधुनिक कार्बन-आइसोटोप-डेटिंग प्रणाली से अनुसंधान द्वारा किसी भी अवशेष का काल अथवा आयु का ज्ञान प्राप्त किया जा सकता है|

इस शताब्दी के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक अनुसंधानों से यह ज्ञात हुआ है कि पृथ्वी और हमारे सौरमण्डल के अन्य ग्रहों का उद्भव सूर्य से हुआ है| अनुमान लगाया गया है कि आज से लगभग 6 अरब वर्ष पृथ्वी रक दहकते हुए अंगारे की भांति किसी विशेष ब्रह्माण्डीय घटना के दौरान सूर्य से अलग हुई थी|

तब से लेकर आज तक के समय अन्तराल को 6 महायुगों में विभाजित किया गया है| इनमें से प्रत्येक महायुग की कई करोडों वर्षो की भिन्न-भिन्न अवधि है| इन्हें एजोइक, आर्कियोजोइक प्रोटिरोज़ोइक, पेलिओजोइक, मीसोजोइक तथा सिनोजोइक महायुगों के नाम दिये गए है|

प्रायः पहले तीन युगों को इकट्ठे रूप से पूर्व-कैम्ब्रियन महायुग(प्रीकैम्ब्रियन ईरा) के नाम से भी व्यक्त किया जाता है| पूर्व कैम्ब्रियन महायुग में पृथ्वी का विशेष रूप से अजैविक रूप से ही विकास हुआ, अर्थात् पृथ्वी की सूर्य से उत्पत्ति के उपरांत से लेकर पूर्व-कैम्ब्रियन महायुग तक पृथ्वी का भौतिक एवं रासायनिक घटनाओं के द्वारा ही परिवर्तन एवं विकास हुआ और अनुमानतः इस अवधि में पृथ्वी पर अन्य ग्रहों की भांति किसी भी जीव आदि की उत्पत्ति नही हुई थी|

पृथ्वी का उद्भव और विकास? लगभग साढ़े 4 अरब वर्ष पूर्व धरती का स्वरूप एक दहकते हुए अग्नि के गोले से बदलकर शीतल सख्त चट्टानमयी गोले के समान हो गया| लगभग 3 अरब वर्ष पूर्व धरती का अधिकतर भाग जल के विशाल भण्डार में दबा हुआ था| अर्थात इस दौरान लाखों वर्षो तक बिजली के चमकने, लगातार वर्षा होने, वाष्पन तथा संघनन की निरंतर क्रिया चलते रहने तथा कई रासायनिक घटनाओं के उपरान्त पृथ्वी पर जल के विशाल भण्डार तथा वायुमण्डल का निर्माण हुआ|

60 करोड़ वर्ष से पूर्व तक के समय का युग ही प्री-कैम्ब्रियम महायुग कहा जाता है| पृथ्वी पर इस काल अवधि में जीवन के मात्र मौलिक अणुओं तथा संरचनाओ का ही जन्म हुआथा|

पृथ्वी का उद्भव और विकास?अर्थात देखने योग्य पृथ्वी के धरातल अथवा समुद्र में जीव-जन्तु या पेड़-पौधे आदि कुछ न थे| प्रीकैम्ब्रियम महायुग के पश्चात् फिर तेजी से जल और थल में जीवन के विभिन्न रूपों का जैव उद्भव तथा विकास प्रारम्भ हुआ?|

प्रोटिरोज़ोइक युग में समुद्र के कोने-कोने में निम्नतम स्तर के जीवों-प्रोटोजोआ(एक-कोशिकीय जीव,) मूंगा, जेलीफिश, शंख-सीप इत्यादि की प्रचुरता थी|

पेलिओजोइक युग में पृथ्वी पर अनेक प्रकार के कीट-पतंगे विभिन्न प्रकार के मॉस-घास इत्यादि, अनेकों प्रकार के जलीय तथा जल-स्थलचर जन्तु फैले हुए हुए थे|

मीसोजोइक युग (7 करोड़ से 22 करोड़ वर्ष पूर्व तक का काल) में पृथ्वी पर जल, थल और नभ में विचरने वाले लाखों सूक्ष्म से लेकर महाकाय जीव-जन्तु तथा वनस्पतियों की अनेकों जातियों की बहुलता थी|

इसी युग में डायनोसॉर जैसे विशालकाय सरीसृपो का राज था| खाने तथा स्थान की उत्तम प्रचुरता के कारण इन की संख्या में बहुत वृद्धि हुई| जैव अवशेषों के अनुसंधान-विश्लेषणों से अनुमान लगाया गया है कि लगभग 6 करोड़ वर्ष पूर्व किसी खगोलीय दुर्घटना के कारण इन सभी विशालकाय प्राणियों का सर्वनाश हो गया|

आज से 7 करोड़ वर्ष पूर्व तक के इस महायुग को सिनोजोइक महायुग कहा जाता है| इस युग के प्रारम्भ में हाथियों जैसे विशाल मैमथ हुआ करते थे| इसी युग में अनेकों प्रकार के अन्तर्बीजी(आवृतबीजी) पेड़-पौधों का भी विकास हुआ|

डार्विन के बताये जैव-विकास के अनुसार हमारे पूर्वजों वनमानुष(बंदर) का विकास भी इसी युग में हुआ| इस प्रकार विकास का क्रम लाखों वर्षो की अवधि में चलते हुए धीरे-धीरे वनमानुषो से मानव के विकास की कहानी प्रारम्भ हुई और फलस्वरूप आज की दुनिया का समस्त प्राणी जगत अस्तित्व में आया|

मानव (होमोसेपियन सेपियन) आज के युग का सबसे अधिक विकसित प्राणी है, जिसने अपनी बुद्धि के बल पर आदि से अनन्त की खोज का अद्भुत साहसिक प्रयास किया है|

जैव विकास की यह प्रक्रिया आगे आने वाले युगों में भी चलती रहेगी और इसी प्रकार उत्तम से सर्वोत्तम जातियों का अस्तित्व सम्भव हो सकेगा| हम सभी मानव का यह दायित्व है कि ब्रह्माण्ड की इस अद्भुत रचना (पृथ्वी) के प्राकृतिक विकास में किसी प्रकार से बाधक न बने और प्रकृति की प्रत्येक रचना का सम्मान करे, ताकि इस अद्भुत खगोलीय पिण्ड की आने वाली नस्लों को उनकी समृद्ध धरोहर प्राप्त हो सके|

पृथ्वी का निर्माण कितने वर्ष पूर्व हुआ?

पृथ्वी का उद्भव और विकास? पृथ्वी का निर्माण वैज्ञानिको का कहना है की साढ़े 4 अरब वर्ष पहले हुआ था लेकिन वैज्ञानिको के नये अध्ययन में लगभग उर्म 6 करोड़ वर्ष में होने का दावा किया है|

पृथ्वी का केंद्र कहाँ है?

पृथ्वी का केंद्र कहाँ है? पृथ्वी का केन्द्र पृथ्वी के एक तरफ उत्तरी ध्रुव तथा दूसरी और दक्षिणी ध्रुव इन दोनों के बीच स्थित है जिस केन्द्र में कैलाश पर्वत तथा हिमालय का केन्द्र माना जाता है|

पृथ्वी के अन्दर क्या है?

पृथ्वी के अन्दर क्या है? वैज्ञानिको द्वारा कहाँ जाता है कि पृथ्वी के अन्दर चार परते बतायी है

  • मैंटल
  • बाह्य क्रोड़
  • आंतरिक क्रोड़
  • भूपर्पटी

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