जी दोस्तों आज हम इस लेख के माध्यम से Gametogenesis जिसमे युग्मक जनन (Gametogenesis) का वर्गीकरण में शुक्राणु की संरचना, अण्डाणु की संरचना, अण्डो के प्रकार तथा निषेचन की प्रक्रिया जानिंगे|
वर्ग विशेष या जाति के विकास को अध्ययन के जातिवृत्तीय परिवर्धन (Phylogenetic development), जबकि जीव या प्राणी विशेष का परिवर्धन व्यक्तिवृत्तीय परिवर्धन कहलाता है|
व्यक्तिवृत्त (Ontogeny)
इसके अंतर्गत युग्मकजनन (Gametogenesis) से लेकर शिशु या लारवा बनने तक की सभी अवस्थाओं का अध्ययन किया जाता है| पूर्व में इसे भ्रूणीय परिवर्धन कहते थे|
इस व्यक्तिवृत्त के भ्रूणीय परिवर्धन में दो अवस्थाएँ पाई जाती है|
युग्मकजनन (Gametogenesis)
युग्मकजनन (Gametogenesis) एक जटिल प्रक्रम है, इसमें अर्द्धसूत्री तथा समसूत्री विभाजन द्वारा अगुणित युग्मको का निर्माण होता है| नर युग्मक, शुक्राणु के निर्माण की प्रक्रिया को शुक्राणुजनन कहते है|
जबकि मादा युग्मक, अण्डाणु के निर्माण की प्रक्रिया को अण्डाणुजनन कहते है| शुक्रजनन व अण्डजनन में तीन प्रावस्थाएं, गुणन प्रावस्था, वृद्धि प्रावस्था तथा परिपक्वन प्रावस्था होती है|
शुक्रजनन की गुणन प्रावस्था में जनन एपिथीलियन की कोशिकाओं में बार-बार समसूत्री विभाजन द्वारा शुक्राणुजन कोशिकाएँ या स्पर्मेटोगोनिया बनती है| वृद्धि प्रावस्था में स्पर्मेटोगोनिया पोषक पदार्थ एकत्र कर प्राथमिक स्पर्मेटोसाइट बनाती है, जो परिपक्वन प्रावस्था में अर्द्धसूत्री विभाजन द्वारा स्पर्मेटिड्स बनाती है|
स्पर्मेटिड के शुक्राणु में परिवर्तित होने की क्रिया स्पर्मियोजेनेसिस या स्पर्मेटोलियोसिस कहलाती है|
मनुष्य के शुक्राणु के शीर्ष में केन्द्रक तथा अग्र छोर पर गौल्जीकाय से बना एक्रोसोम होता है| इसके ग्रीवा में दो सेन्ट्रियोल तथा मध्य भाग में माइटोकॉण्ड्रिया से बना सर्पिल आच्छद होता है तथा पूँछ स्वतंत्र होती है|
अण्डजनन की गुणन प्रावस्था में अण्डाशय के भीतर की प्रारम्भिक जनन कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन द्वारा अण्डाणुजन या अण्डजननी कोशिकाएँ बनती है|
वृद्धि प्रावस्था में अण्डजननी कोशिकाएँ पोषक पदार्थ या पीतक एकत्र कर प्राथमिक अण्डक बनाती है| डिम्बोत्सर्ग या अण्डोत्सर्ग एक बड़ी द्वितीयक अण्डक कोशिका तथा छोटी प्रथम ध्रुव कोशिका बनाती है| द्वितीयक अण्ड कोशिका समसूत्री विभाजन द्वारा एक छोटी द्वितीयक ध्रुव कोशिका तथा बड़ा अण्डाणु बनाती है|
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शुक्राणु की संरचना (Structure of sperms)
प्रत्येक शुक्राणु शीर्ष, मध्यखण्ड तथा पुच्छ तीन भागों में विभेदित होता है|
(1) शीर्ष (Head)
शीर्ष प्रायः फूला हुआ, घुण्डीदार होता है, परन्तु अनेक जन्तु जातियों में यह लम्बा, दण्डनुमा होता है| इसमें केन्द्रक स्थित होता है और केन्द्रक के चारों ओर थोड़ा-सा कोशिकाद्रव्य होता है| इसके शीर्ष पर गौल्जीकायो की बनी एक्रोसोम नामक रचना टोपी की भाँती ढकी होती है|
(2) मध्यखण्ड (Middle Portion)
मध्यखण्ड शीर्ष से पतला, दण्डनुमा भाग होता है, जो छोटी सी ग्रीवा द्वारा शीर्ष सेजुड़ा रहता है| मध्य खण्ड में माइटोकॉण्ड्रिया उपस्थित होते है| माइटोकॉण्ड्रिया के आगे, ग्रीवा में, आगे पीछे स्थित दो सेन्ट्रियोल्स होते है|
(3) पुच्छ (Tail)
पुच्छ प्रायः लम्बी, कोड़ेनुमा और अत्यधिक गतिशील होती है| पुच्छ द्वारा शुक्राणु तरल माध्यम में तैरता है|
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अण्डाणु की संरचना (Structure of ova)
अण्डाणु आकार में गोल होते है| अण्डाणु का ऊपरी आधा भाग प्राणी गोलार्ध होता है, जिसका ऊपरी भाग प्राणी ध्रुव कहलाता है तथा बाकि भाग वेजिटल पोल कहलाता है|
अण्डो के प्रकार (Types of Eggs)
पीतक (yolk) की मात्रा के आधार पर अण्डे निम्न प्रकार के होते है
(अ) सूक्ष्मपीतकी या माइक्रोलेसिथल पीतक थोड़ी मात्रा में उपस्थित होता है| उदाहरण- स्पंज, एम्फिऑक्सस, ट्यूनिकैट्स, युथीरियन आदि|
(ब) मध्यपीतकी या मीसोलेसिथल इसमें पीतक की मात्रा मध्यम दर्जे की होती है| उदाहरण- पेट्रोमाइजोन, उभयचर आदि|
(स) अतिपीतकी या पॉलीलेसिथल इनमे पीतक की मात्रा अधिक होती है| उदाहरण- पक्षी, सरीसृप, अस्थिमय मछली आदि|
पीतक की स्थिति के आधार पर अण्डे अधोलिखित प्रकार के होते है|
(अ) समपीतकी या आइसोलेसिथल जीवद्रव्य में पीतक समान रूप से वितरित रहता है| उदाहरण- स्पंज, ट्यूनिकेट, एम्फिऑक्सस आदि|
(ब) गोलार्धपीतकी या टीलोलेसिथल पीतक अधिक मात्रा में होता है तथा यह वर्धी गोलार्ध की ओर एकत्रित रहता है| उदाहरण- पक्षी, उभयचर, सरीसृप आदि|
(स) केन्द्रपीतकी या सेन्ट्रोलेसिथल पीतक केन्द्र में उपस्थित होता है| उदाहरण कीटों के अण्डे|
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निषेचन (Fertilisation)
नर व मादा युग्मों के संयोजन को निषेचन कहते है, जिसके फलस्वरूप द्विगुणित युग्मजन का निर्माण होता है|
निषेचन के पूर्व अण्ड फर्टिलाइजीन का स्रावण करता है| यह शुक्राणु की सतह पर एन्टीफर्टिलाइजीन नामक ग्राही से क्रिया करता है, जिसके फलस्वरूप आसजन हो जाता है| निषेचन क समय एक्रोसोम हाइलुरोनिडेस एन्जाइम का मोचन करता है, जो अण्ड को घेरे हुए कोरोना रेडिएटा में उपस्थित हाइलुरोनिक अम्ल को घोल देता है|
निषेचन क्रिया उपरान्त युग्मनज बनता है, जो विदलन के परिणामस्वरूप वृद्धि करता हुआ भ्रूण में परिवर्तित होता है, भ्रूण की वृद्धि के फलस्वरूप प्रौढ़ विकसित होता है|
निषेचन के प्रकार
(1) बाह्य निषेचन
जब निषेचन शरीर के बाहर होता है तो वह बाह्य निषेचन कहलाता हैं यह सदैव जलीय माध्यम में होता है|
(2) आन्तरिक निषेचन
यह निषेचन शरीर के अन्दर होता है| यह जलीय माध्यम से भी होता है, परन्तु जनन वाहिनियों के अंदर नही होता है|
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