कवक – Fungi

Table of Contents

कवक(Fungi):-

कवक यूकेरियोटिक, क्लोरोफिल रहित, बीजाणुधारी, एककोशिकीय या बहुकोशिकीय, शाखित,तंतुमय सूक्ष्मजीव है, जिनकी कोशिका भित्ति काइटिन एवं सैलूलोज की बनी होती है सूक्ष्मजीव विज्ञान की इस शाखा में मशरूम का अध्ययन किया जाता है उसे कवक(Fungi) विज्ञान कहते है

जनक – पी.ए.माइकेली को माइकोलोजी का जनक कहा जाता है |

कवको के सामान्य लक्षण

पादप रोग विज्ञान की इस शाखा के अंतर्गत कवको के लक्षण निम्न प्रकार दिखाए गये है

आवास :-

देखा जाये तो सभी कवको में पर्णहरित का पूर्णतया अभाव होता है अत: ये मृतोपजीवी, सहजीवी, परजीवी अथवा परापरजीवी के रूप में सर्वत्र पाये जाने वाले होते है

थैलस :-

जड़, तना तथा पत्ती में अविभेदित संरचना को थैलस कहते है कवक थैलस प्लाजमोडियम, अमीबीय या आभासी प्लाजमोडियम, एककोशिकीय या तंतुमय अर्थात कवकजालीय होता है

कोशिका भित्ति :-

अधिकांश कवको की कोशिका भित्ति काइटिन की बनी होती है परन्तु ऊमाइकोटा संघ के कवको में ये मुख्य रूप से सैलूलोज की बनी होती है

जनन :-

ज्यादातर कवको में जनन, अलैंगिक व लैंगिक विधियों द्वारा सम्पन्न होता है

पोषण :-

कवक परपोषित एवं अवशोषि होते है तथा इनमे अन्तग्रहण बहुत ही कम होता है

केन्द्रकीय स्थिति :-

कवकों(Fungi) में केन्द्रक सुविकसित होता है पटहीन कवको में बहुकेन्द्रकी दशा होती है जबकि पटयुक्त कवकों की कोशिका में एककेन्द्रकी/द्विकेन्द्रकी/बहुकेन्द्रकी दशा होती है

जीवन चक्र :-

कवकों का जीवन चक्र सरल से जटिल तक होता है

कवकजाल(Mycelium):-

  • कवक का थैलस अनेक पतली धागे जैसी नलिकाकार संरचनाओं से बनता है जिन्हें कवकतन्तु कहते है जब बहुत सारे कवक तन्तु इकट्टे होकर एक जालनुमा संरचना का निर्माण करते है
  • ये कवक जाल पटहीन या पटयुक्त होते है पटहीन कवकजाल, जिसमे बहुत सारे केन्द्रेक उपस्थित हो तो ऐसा कवकजाल पटहीन तथा ऐसी अवस्था संकोशिकी कहलाती है जैसे-ऊमाइसिटीज वर्ग
  • यदि कवकतन्तु को आडी भित्तियों जो पट कहलाती है, छोटी-छोटी कोशिका के समान खण्डों में विभाजित कर देती है तब यह पटयुक्त कवकतन्तु कहलाते है जैसे-स्कोमाइसीट्स आदि

कवक(Fungi)कोशिका :-

  • कवक की कोशिका सुविकसित केन्द्रक युक्त होती है जो कोशिका भित्ति, कोशिका झिल्ली, कोशिका द्रव्य एवं कोशिकांग से मिलकर बनी होती है
  • कोशिका द्रव्य में विभिन्न कोशिकांग जैसे -केन्द्रक, केन्द्रिका, सूत्रकणिका, अन्तर्द्रव्यी जालिका, राइबोसोम्स, रसधाननियाँ, लाइसोसोम्स, पुटिकाए, जालिकाय इत्यादि उपस्थित होते है
  • रासायनिक रूप से कवक कोशिका में कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन्स, लिपिड्स, न्यूक्लिक अम्ल इत्यादि की उपस्थिति होती है
  • कोशिका द्रव्य में 80S तथा माइटोकॉन्ड्रिया में 70S के राइबोसोम्स होते है राइबोसोम्स, प्रोटीन्स एवं RNA के बने होते है
  • कोशिका में ग्लाइकोजन, वसा एवं तेलों, भोज्य पदार्थ के रूप में सचित रहते है

कवको में पोषण की विधियाँ :-

  • पर्णहरित न होने के कारण कवक अपना भोजन स्वयं नही संश्लेषित कर सकते तथा दूसरे स्रोतों पर निर्भर रहते है, इसलिए ये परपोषित होते है
  • कवक घुलनशील पदार्थो का अवशोषण, कवकजाल की भित्ति एवं झिल्ली अथवा कुछ कवको में चूषकांगो द्वारा अवशोषित करते है
  • कवक पोषण प्राप्ति के आधार पर तीन वर्गो में बाँटा गया है

(1)मृतजीवी :-

वे कवक जो अपना भोजन मृत कार्बनिक पदार्थो से प्राप्त करते है मृतजीवी कहलाते है जैसे-म्यूकर, एगेरीकस आदि

(2)परजीवी :-

वे कवक जो अपना भोजन जीवित जीवो से प्राप्त करते है परजीवी कहलाते है इनको तीन भागों में बाँटा गया है

(1)अविकल्पी परजीवी :- ऐसे परजीवी जो अपना सम्पूर्ण जीवनकाल दूसरे जीवित जीवों पर ही व्यतीत करते है इनको प्रयोगशाला में कृत्रिम माध्यम पर नही उगाया जा सकता है जैसे -एल्बूगो, एरीसाइफी, स्क्लेरोस्पोरा, पक्सीनिया आदि

(2)विकल्पी मृतजीवी :- यह कवक(Fungi) एक प्रकार से परजीवी होते है लेकिन आवश्यकता पड़ने पर कुछ समय के लिए मृतजीवी के भाँती अपना भोजन प्राप्त कर सकते है

यह जीवित परपोषी के अलावा मृत पदार्थो पर भी अपना जीवन यापन कर लेते है जैसे -अस्टीलागो, टेफ्रीना आदि

(3)विकल्पी परजीवी :- यह कवक(Fungi) मुख्य रूप से मृतजीवी होते है लेकिन यह कभी परजीवी के रूप में भी रहते है जैसे -फ्यूजेरियम, पीथियम इत्यादि

(3)सहजीवी :-

सहजीवी वो कवक(Fungi) जो अन्य जीवों के साथ मिलकर जीवन व्यतीत करते है तथा एक दूसरे को लाभ पहुँचाते है जीवन जीने की यह कला सहजीवी कहलाती है जैसे –लाइकेन, माइकोराइजा आदि

लाइकेन किसे कहते है :-

“कवक”(Fungi)+”शैवाल” या “कवक”+”सायनोबैक्टीरिया” के सहजीवन को लाइकेन कहते है सहजीवन की इस जीवन लीला में एक कवकजीव तथा दूसरा प्रकाशजीव शैवाल या साइनोबैक्टीरियम एक साथ मिलकर जीवन जीते है

प्रकाशजीव को पहले, शेवालांश के नाम से जानते है शैवाल या सायनोबैक्टीरियम को कवक से कुछ खनिज, जल एवं कार्बनिक पदार्थ प्राप्त होते है तथा कवक को पोषक देकर बदले में शैवाल में कार्बोहाइड्रेट प्राप्त होता है

लाइकेन प्रदूषित क्षेत्रों में नही उगते, जिसके कारण ये प्रदूषण के बहुत अच्छे सूचक भी है

माइकोराइजा किसे कहते है :-

इसके द्वारा सहजीवी से कवको को कार्बोहाइड्रेट मिलती है जबकि पादपों को p एवं n उपलब्ध करवाने के साथ-साथ सूखा एवं रोगों के प्रति लड़ने की क्षमता भी प्रदान करते है जैसे -ग्लोमस कवक का सम्बन्ध पाइन्स, फर, यूकेलिप्टस इत्यादि की जड़ो के साथ |

माइकोराइजा की खोज किसने की?

इसकी खोज फ्रेंक ने सन् 1885 में की थी “माइकोराइजा” शब्द, “माइक्स” तथा “राइजा” से मिलकर बना है और बताया की “कवक(Fungi) एवं उच्च पादपों की जड़ो में सहजीवन को माइकोराइजा कहते है |

Conclusion

हम आशा करते है कि आज की इस पोस्ट में आपने Fungi(कवकों) से सम्बंधित जानकारी पढ़े होगी अगर की पोस्ट से आपको कुछ सिखने से मिला तो आप इस page को अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे, धन्यवाद

यहाँ ही पढ़े :- computerskillup

2 thoughts on “कवक – Fungi”

Leave a Comment