दोस्तों आज के इस इतिहास कोर्स में हम मेवाड़ का इतिहास तथा मेवाड़ का इतिहास से सम्बंधित जानकारी और मेवाड़ का इतिहास में शामिल योद्धाओं के नाम, मेवाड़ का इतिहास से सम्बंधित युद्धों का वर्णन की चर्चा करेंगे |
मेवाड़ का इतिहास(History of Mewar)
- मेवाड़ रियासत राजस्थान की सबसे प्राचीन रियासत है |
- जो दृढ राखे धर्म” तिहिं राखैकरतार’ ‘ ये पंक्तियां उदयपुर के राज्य चिह्न में अंकित है |
- बायण माता मेवाड़ के शासकों की कूल देवी है |
- पहले गुहिल शासक गुर्जर प्रतिहारा के सामन्त थे |
- मेवाड़ के महाराणाओ के राजसिंहासन के समय उन्दरी गाँव के भील सरदार अपने अंगुष्ठ(अंगुठे) के रक्त से राणा का राजतिलक करता था |
मेवाड़ के प्राचीन नाम
- शिवि
- मेदपाट
- प्राग्वाट
मेवाड़ में प्रमुख राजवंश
- गुहिल (गहलोत)
- सिसोदिया
- मेवाड़ के शासकों को हिन्दुआ सूरज कहा जाता हैं |
- मेवाड़ का इतिहास राजस्थान का सबसे गौरवपूर्ण इतिहास है |
- मेवाड़ में गुहिलो की 24 शाखाए हुई |
- कर्नल जेम्स टॉड और मुहणोत नैणसी ने भी गुहिलों की 24 शाखाएं बताई है |
- मेवाड़ के शासक स्वयं को भगवान श्रीराम के पुत्र कुश के वंशज बताते है |
मेवाड़ के शासकों की उत्पति के मत
- अबुल फजल ने मेवाड़ के शासकों को ईरान के शासक नौशेरवा आदिलशाह की संतान बताया है |
- कर्नल जेम्स टॉड ने विदेशी बताया है |
- डॉ. भण्डारकर व डॉ. गोपी शर्मा ने इन्हें ब्राम्हण वंशिय बताया है |
- डॉ. गौरी शंकर औझा ने इन्हें सूर्यवंशी बताया है |
- नोट:- गौरी शंकर औझा गुहिलों की ब्राह्मण वंशीय उत्पति के सिद्धान्त का विरोध करता है |
- गुहिल :-पिता :-शिलादित्य
- माता :– पुष्पावती
- गुहिल वंश का संस्थापक गुहिल है |
- गुहिल के उपनाम – गोहादित्य व गोह
- गुहिल ने 566 ई. में गुहिल वंश की स्थापना की |
- गुहिल ने हुण वंश के शासक मिहिर कुल को हराकर गुहिल वंश की स्थापना की थी |
- गुहिलों की प्रारम्भिक राजधानी नागा (उदयपुर) थी |
- गुहिल विश्व का एकमात्र ऐसा राजवंश है जिसने एक स्थान पर सर्वाधिक समय तक शासन कियाए ( डॉ.गौरी शंकर हीराचंद औझा)
- बप्पा रावल :– पिता :-नागादित्य
- माता :-कमलावती
- बप्पा रावल का वास्तविक नांम – कालभोज(कर्नल जेम्स टॉड व मुहणौत नेंणसी के अनुसार
- बप्पा रावल गुहिल वंश का वास्तविक संस्थापक था |
- बष्पा रावल का ईष्टदेव एकलिंग जी था |
- एकलिंग जी के मंदिर का निर्माण बप्पा रावल ने कैलाशपुरी (उदयपुर) में करवाया |
- एकलिगंजी (शिवजी) मेवाड़ के शासकों का कूल देवता है |
- आसकां लेना –मेवाड़ के शासक जंब भी राजधानी छोड़कर कही दूसरी जगह जाते तो वह एकलिंग से आज्ञा लेत थे इसे आसका लेना कहते है
- बेजनाथ प्रशस्ति के अनुसार बप्पा रावल हारित ऋषि की गाये चराता था |
- बप्पा रावल,मौर्य वंश के शाराक मानमोरी को हराकर चित्तौडगढ का शासक बना |(734 ई.)
- सी .वी वेद ने बप्पा रावल को चाल्समादित्य की उपाधि दी है |
- सी.वी.वेद ने बप्पा रावल को शिवाजी के समान धार्मिक व विदेशी आक्रमणकारियों से धृणा करने वाला बताया है |
- मेवाड में सर्वप्रथम सोने के सिक्के बप्पा रावल ने ही चलाये थे |
- बप्पा रावल के बारे में कहावत हैं कि यह 35 हाथ की धोती,16 हाथ का दुपट्टा व 32 मण की खड्ग रखता था तथा एक दिन में चार बकरे खाता था |
- बप्पा रावल एक झटके में दो भैसों की बलि देता था |
- कुम्भलगढ शिलालेख अनुसार बप्पारावल विप्र वंशिय ब्राह्मण था और गुहिल का पिता था लेकिन पिता वाली बात सत्य नही है |
- रणकपुर प्रशस्ति के अनुसार बप्पा रावल व कालभोज अलग-अलग व्यक्ति थे |
- आम्र कवि द्वारा लिखित एकलिंग प्रशस्ति में बप्पा रावल के सन्यास लेने की घटना की पुष्टि होती है |
- एक कहावत अनुसार बप्पा रावल ने मध्य एशिया पर अधिकार कर लिया था |
- डॉ.गोपीनाथ शर्मा बप्पा रावल के सन्यांस लेने की तिथि 753 ई.को मानता है |
- मृत्यु :- नागदा (उदयपुर)
- समाधी :-नागदा (उदयपुर)
भरत भट्ट द्वितीय :-
- आटपुर लेख में इसे तीनों लोकों का तिलक कहा गया है |
- प्रतापगढ अभिलेख में इसे महाराजाधिराज की उपाधि दी गई है |
अल्लहट :-
- इसे आलु रावल भी कहते है |
- नोट :– इसने आहड़ को अपनी राजधानी बनाया |
- मेवाड़ में सबसे पहले इसी के समय नौकरशाही प्रारम्भ हुई |
- अल्लहट राजस्थान का प्रथम शासक था जिसने सबसे पहले विदेशी विवाह किया |
- अल्लहट ने हुण राजकुमारी हरियादेवी से विवाह किया |
- नोट :– भारत में सर्वप्रथम विदेशी विवाह चन्द्रगुप्त मोर्य ने किया था |
रणसिंह :-
- इसने अहोर पर्वत पर एक दुर्ग बनाया |
- इसके समय गुहिल वंश दो शाखाओं में विभकत हुआ |
- 1. राणा शाखा :– संस्थापक – राहप
- 2. रावल शाखा :- संस्थापक -क्षेमसिंह
तेजसिंह :-
- इसके समय कमलचन्द ने श्रावक प्रतिक्रमण सूत्र चूर्णी नामक ग्रन्थ लिखा |
- यह ग्रन्थ मेवाड़ चित्रशैली का सबसे प्राचीन चित्रित ग्रन्थ है |
जैत्र सिंह :-
- दिल्ली का शासक इल्तुतमिश नागदा पर आक्रमण करके बार-बार हानि पहुँचा रहा था इसलिए जैत्र सिंह ने अपनी राजधानी चित्तौड़गढ़ बनायी |
- जैत्रसिंह ने 1227 में इल्तुतमिस के साथ भूताला का युद्ध लड़ा जिसमे जैत्रसिंह विजय हुआ |
- जैत्रसिंह ने दिल्ली में 6 राजाओं का शासनकाल देखा |
समर सिंह :-
- आचार्य अमित सिंह के प्रभाव में समरसिंह ने अपने राज्य में जीवहिंसा पर रोक लगा दी |
- चितोड़गड की वीर कन्या विधुल्लता का उल्लेख समर सिंह (1273 -1302) के समय मिलता है |
- विधुल्लता समर सिंह से प्रेम करती थी |
- जब अल्लाउद्दीन खिलजी ने चितोड़गड पे आक्रमण किया तो समर सिंह ने विश्वास घात करके अल्लाउद्दीन का साथ दिया जब विधुल्लता को पता चला तो उसने कटार निकालकर अपनी छाती में घोप ली और शहीद हो गई |
रतन सिंह (1302 -1303):-
- पिता -समरसिंह
- रानी – पदमनी (रतन सिंह की प्रथम पत्नी नागमती थी |)
- रतनसिंह के छोटे भाई कुम्भकरण ने नेपाल में गुहिल वंश स्थापना की |
- रतनसिंह गुहिल वंश का अन्तिम शासक था |
- रानी पदमनी सिहल दीप (श्रीलंका) की राजकुमारी तथा गन्धर्व सैन की पुत्री थी |
- रानी पद्मनी का तोता -हिरामन
- अलाउद्दीन खिलजी रानी पदमनी को पाना चाहाता था, इसलिए जनवरी 1303 चित्तौड़गढ़ पर आक्रमण किया |
आक्रमण के कारण :-
- रानी पद्मनी को पाना चाहता था |
- रतनसिंह का बढ़ता हुआ प्रभाव |
- अलाउद्दीन की साम्राज्यवादी नीति |
- अलाउद्दीन खिलजी को रानी पदमनी के बारे में राघव चेतन(काला चेतन) नामक जादूगर ने
बताया | - अलाउद्दीन ने लगभग आठ महिने तक चित्तौड़गढ़ को घेरे रखा |
- अगस्त 1303 में हुए युद्ध में रतनसिंह अलाउद्दीन के साथ युद्ध करता हुआ मारा गया |
- रतनसिंह के साथ रतनसिंह के सेनानायक गौरा और बादल भी मारे गये |
- गौरा बादल रानी पदमनी के क्रमश: चाचा और भाई थे |
- रानी पदमनी के नेतृत्व में 1303 में जौहर हुआ |
- यह राजस्थान का सबसे बड़ा जौहर था |
- रानी पदमनी के साथ लगभग 1600 महिलाओं ने जौहर किया |
- यह राजस्थान का दूसरा जौहर व दूसरा शाका था |
- यह चित्तौड़गढ़ का प्रथम जौहर व प्रथम शाका था |
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ का शासक खिज्र खाँ को बनाया |
- अलाउद्दीन ने चित्तौड़गढ़ का नाम बदल कर खिज्रा बाद रखा |
- इस युद्ध में अलाउद्दीन खिलजी के साथ अमीर खुसरो नामक विद्वान उपस्थित था |
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़गढ़ में पत्थर फेंकने के लिए मजनिक उपकरण काम में लिया था |
- पदमावत ग्रंथ :- मलिक मोहम्मद जायसी ने 1540 में लिखा। पद्मावत ग्रंथ अवधी भाषा में लिखा गया है |
- मलिक मोहमद जायसी ने कहा की चित्तोडगढ को शरीर ,रतन सिंह को ह्दय, पदमनी को बुद्धी और अलाउद्दीन को माया कि उपाधि देकर कहा है कि इस प्रेम कथा के तत्व को समझ सके वह इसी दृष्टी से देखें |
- एकमात्र इतिहासकार डॉ. दशरत शर्मा है जिसने रानी पदमनी को ऐतिहासिक पात्र माना है |
- जब रतन सिंह को अलाउद्दीन ने बन्धी बनाया तो कुम्भलगढ के राजा देवपाल ने रानी पदमनी को प्रेम प्रस्ताव भेजा था |
- सजंय लीला बंसाली रानी पदमनी पर फिल्म बनाने को लेकर चर्चा में रहा |
- खिज्र खां 1313 तक चितोड़गड का शासक रहा बाद में जालौर के मालदेव चौहान को शासक बनाया |
महाराणा हमीर (1326-1364) :-
- हमीर गुहिल वंश का ही था जिसने जैसा को हराकर 1326 में सिसोदिया वश की स्थापना की |
- हमीर से मेवाड़ के शासकों के नाम के आगे महाराणा लगाना प्रारम्भ हुआ |
हमीर की उपाधि :-
- मेवाड़ का उद्धारक
- वीर राजा :- (महाराणा कुम्भा के रसिक प्रिया टीका में दी गई है |)
- विषम घाटी पंचानन :- (अर्थ-विकट आक्रमणों में सिंह समान ) कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति में दि गई है |
- जब हमीर शासक बना तो उस समय दिल्ली का शासक मोहम्मद बिन तुगलक था |
- हमीर ने मोहम्मद बिन तुगलक के साथ सिंगोली का युद्ध किया जो अर्निणित रहा |
- हमीर के बारे मे जानकारी हमीर मदमर्दन ग्रन्थ से मिलती है जो जयसिंह सूरि ने लिखा था |
क्षेत्रसिंह :- (1364-62) :-
- इसे खेता जी भी कहते है |
- क्षेत्रसिंह बूँदी के तारागढ़ दुर्ग को जीतते समय मारा गया |
राणा लाखा (382-1421) :-
- इसे लक्ष्य सिंह भी कहते है |
- इसके शासन काल में जावर (उदयपुर) में चाँदी की खान मिली, इस जावर की खान को योगिनीपट्टन के नाम से जाना जाता था |
- राणा लाखा के शासन काल में एक चिड़ीमार बणजारे (छितर या पिच्छु) ने उदयपुर में
- अपने बैल की याद में पिछोला झील का निर्माण करवाया |
- राणा लाखा ने वृद्धावस्था में मारवाड़ के रणमल राठौड़ की बहन हंसा बाई के साथ सशर्त विवाह किया |
- इस शर्त के अनुसार हंसा बाई से उत्पन्न पुत्र (मोकल) ही मेवाड़ का शासक बनेगा |
- लाखा के बड़े पुत्र राणा चुड़ा ने प्रतिज्ञा कि “मैं आजीवन कुँवारा रहुंगा और मेवाड़ का शासक नहीं बनुगा” |
- इस कारण राणा चुंड़ा को मेवाड़ का भीष्म मेवाड़ का भीष्म पितामह कहते हैं |
राणा लाखा के दो संस्कृत के विद्वान :-
- झोटिंग भट्ट
- धनेशवर भट्ट
महाराणा मोकल (1421-33) :-
- पिता – राणा लाखा, माता – हंसा बाई
- रामपुरा का युद्ध :- 1428
- मोकल व नागौर क शासक फिरोज खाँ के मध्य
- विजय- मोकल
- मोकल की हत्या चाचा और मेरा ने की |
- राणा मोकल की हत्या (1433)के बाद मेवाड़ में एक कहावत प्रचलित हुई कि “दीवार में
- आला खेत में नाला और घर में साला बर्बाद करके ही जाता है |
- मोकल के दरबार में मना,फना तथा वीसल नामक शिल्पी निवास करते थे |
- राणा चुंडा हंसा बाई के शक की वजह से मेवाड़ छोडकर माण्डु (गुजरात) चला गया |
कुम्भा (1433-68) :-
- जन्म :- 1403 में चित्तौड़गढ़ में हुआ |
- पिता – मोकल , माता – सौभाग्य देवी
- पुत्री – रमाबाई (वागेश्वरी), यह संगीत शास्त्र की ज्ञाता थी |
- कुम्भा को राजस्थानी इतिहास में युग पुरुष कहा गया है |
- कुम्भा नाट्यशास्त्र का अच्छा ज्ञाता था इस कारण नव्यभरत भी कहते है |
- कुम्भा को स्थापत्य कला/ दुर्गों का जनक की कहते है |
- श्यामलदास के वीर विनोद ग्रन्थ के अनुसार मौत 84 दुर्गो में से 32 दुर्गों का निर्माण कुम्भा ने करवाया |
- कुम्भा ने अपने पिता मोकल की मोत का बदला चाचा और मेरा को मार कर लिया |
कुम्भा की उपाधिया :-
- अभिनव भारताचार्य या भट्टचार्य (अर्थ-संगीत का ज्ञाता)
- हिन्दू सुरतान
- महाराजाधिराज
- धीमान
- हालगुरू(अर्थ-गिरी दुर्गों को स्वामी)
- दानगुरू
- छापगुरू
- शैलगुरू
- परमगुरू
- अश्वपति
- राणेराव
- महाराणा
- रावराय
- राणा
- नरपति
कुम्भा के प्रमुख गन्थ :-
- संगीतराज “संगीतराज कुंभा का वृहतम व सर्वश्रेष्ट ग्रन्थ है |
- इसमें 5 कोष है |
- इन कोषो को रत्नकोश भी कहते है |
1.पाठय रत्नकोश 2.नृत्य रत्नकोश 3.गीत रत्नकोश 4.वाद्य रत्नकोश 5.रस रत्नकोश
2. संगीत मीमांसा 3. कामराजरतिसार 4. चण्डीशत 5. सुडप्रबन्ध
6. नृत्यरत्न कोश 7. रसिक प्रिया टीका - कुम्भा का रसिक प्रिया टीका जयदेव के गीत गोविन्द पर आधारित है |
- कुम्भा ने एकलिंग महात्मय ग्रन्थ को लिखना प्रारम्भ किया जिसको पूरा कान्हा व्यास ने किया |
- महाराणा कुम्भा द्वारा रचित एकलिंग महात्म्य में विभिन्न रागों व तालों के साथ गाई जाने वाली देवताओं की स्तूतियाँ वर्णित है |
- एकलिंग महात्मय के कुम्भा द्वारा लिखे गए प्रथम भाग को राजवर्णन कहते है |
- कान्हा व्यास कुम्भा का वैतनिक कवि था |
- कुम्भा ने एकलिंग जी मंदिर का जीर्णद्वार (मरम्मत) करवाया |
- सारंगपुर का युद्ध का युद्ध :– 1437 में गुजरात में हुआ |
- कुम्भा व मालवा के शासक महमूद खिलजी के मध्य हुआ |
- महमूद खिलजी ने इस युद्ध में स्व्य की विजय मानकर गुजरात में सात मंजिली मीनार का निर्माण करवाया |
- महमूद खिलजी ने बाण माता की मूर्ति तोडकर टुकडो को कसाईयों को मांस तोलने के लिए दे दिया |
- महमूद खिलजी ने भगवान शिव के वाहन नंदि जी की मूर्ति को पिसकर चूना बना दिया और राजपूतों को पान में खिला दिया |
- वास्तव में सांरगपुर के युद्ध में विजय कुम्भा हुआ था |
- इस विजय के पश्चात् कुम्भा ने विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया |
- विजय स्तम्भ :- चित्तौड़गढ़ दुर्ग में महाराणा कुम्भा ने निर्माण करवाया | (1440 से 1448)
उपनाम :-
- कीर्ति स्तम्भ
- जय स्तम्भ
- हिन्दू देवी- देवताओं का अजायबघर (डॉ.गोपीनाथ शर्मा)
- भारतीय मूर्ति कला का विश्व कोष[(हर्मन गोट्स के अनुसार)
- विष्णु ध्वज
- विक्ट्री टॉवर
- लोक जीवन का रंग
- फर्ग्यूसन ने इसकी तुलना रोम मैं स्थित टार्जन से की है
- कर्नल जेम्स टॉड ने कुतुबमीनार से बेहतर बताया
- विजय रतम्भ के मुख्य पर विष्णु भगवान की मूर्ति लगी हुई है |
- ऊचाई :- 122 फीट है |
- 9 मंजिला है | तीसरी मंजिल पर 9 बार अरबी भाषा में अल्लाह लिखा है |
- 9 वीं मंजिल बिजली गिरने से क्षतिग्रस्त हो गई थी, जिसका पुनः निर्माण स्वरूप सिंह ने करवाया |
- सीढ़िया :– 157 है |
- यह राजस्थान पुलिस तथा माध्यमिक शिक्षा का प्रतिक चिह्य है |
- यह राजरथान की प्रथम इमारत है जिस पर 15 अगस्त 1949 को डाक टिकिट जारी की गई |
- यह डाक टिकट 1 रू. की थी |
- यह भारत का एकमात्र स्तम्भ है, जिसके अन्दर व बहार दोनों तरफ विभिन्न मूर्तियों लगी हुई है |
- कीर्ति स्तम्भ प्रशिस्त का प्रारम्भ गणेश व शिव जी की स्तुति से होता है |
- कीर्ति स्तम्भ प्रशिस्त मेवाड़ी भाषा में लिखा गया है |
- विजय स्तम्भ पीले पत्थरों से बना हुआ है |
- इसके निर्माण में 90 लाख रूपये खर्च हुए |
- वास्तुकार :- जैता
- 8 वी मंजील पर कोई भी चित्र नहीं है |
- औरंगजेब ने वियज स्तम्भ को खंडीत करवा दिया था |
- जैन कीर्ति स्तम्भ प्रशिस्त :– चित्तोडगढ दुर्ग में जैन कीर्ति प्रशस्ति लगी है |
- यह प्रशस्ती जैन व्यापारी जीजा ने बनवायी थी |
- यह भगवान आदीनाथ को समर्पित है |
- इसकी ऊँचाई :- 76 फीट
- वास्तुकार :- अत्रिभट्ट और महेश भट्ट
- आवला – बावला की संधि :- 1453 में ,
- इस संघि द्वारा मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा का निर्धारण हुआ |
- यह संधि महाराणा कुम्भा और राव जोधा के मध्य हुई |
- यह संधि हंसा बाई ने करवाई |
- इस संधि का मुख्य केन्द्र सोजत (पाली) था |
- चम्पानेर की संधि :- 1456 में |
- यह संधि मालवा के शासक महमूद खिलजी तथा गुजरात के कुतुबुद्दिन शाह के मध्य हुई |
- यह संधि मेवाड़ के बटवारे से सम्बन्धित थी |
- कुम्भा के प्रमुख वास्तुकार :- जैता, कुपा, पूंजा, मण्डन, नापा
- मण्डन की रचनाएँ-प्रसाद मण्डन ,रूप मण्डन,वास्तु मण्डन,कोदंड मंडन,राजवल्लभ मंडन
- मण्डन द्वारा लिखित रूप मण्डन का सम्बन्ध मूर्तिकला से है | प्रसाद मण्डन का सम्बन्ध देवालय निर्माण कला से है | कोदंड मंडन का सम्बन्ध धनुर्विधा से है |
- कुम्भा की जानकारी कुम्भलगढ़ शिलालेख (1460 में) से मिलती है |
- महाराणा कुंभा ने आबू तीर्थ पर जाने वाले जैन यात्रियों से लिये जाने वाले कर को समाप्त कर दिया था |
- कुम्भा के दरबार में पुराण वाचक के रुप में आशानंद की नियुक्ति की गई |
- मालवा और मेवाड क मध्य प्रमुख विवाद नागौर के उत्तराधीकार को लेकर था |
- राणा कुम्भा ने नागौर में एक मस्जिद को जलाया और नागौर को चारागाह बना दिया |
- कुम्भा ने आचार्य सोमदेव को कविराज की उपाधि दी |
- सुमति झाली कूम्भा की रानी थी जिसने रेदास को अपना गुरु बनाया और मेवाड़ के राजघराने में भक्ति परपरा को शुरू किया |
- कुम्भा की हत्या कुम्भा के ही पुत्र उदा ने कटारगढ दुर्ग में की, इस कारण उदा को मेवाड़ का पित्रहन्ता कहा जाता है |
- कर्नल जेम्स टॉड कहा है कि कुम्भा में महाराणा हमीर की शक्ति ,लाखा का कला प्रेम और वह प्रतिभा थी जिसने घग्गर के तट पर फिर से मेवाड़ के झंडे को स्थापित कर स्थाई प्रतिष्ठा अर्जित की थी |
- हरविलास शारदा ने कहा हैं कि कुम्भा एक महान शासक महान सेनाध्यक्ष,महान निर्माता एव विरिष्ठ विद्धान था |
- कुम्भा विणा बजाने में अति निपुण था |
- सबसे अधिक मेवाड़ की बौद्धिक व कलात्मक उन्नति का श्रेय महाराणा कुम्भा को है |
उदा (1468-73) :-
- इसे उदयकरण तथा उदयसिंह प्रथम भी कहा जाता है |
- आकाशीय बिजली गिरने से उदा की मृत्यु हो गई |
रायमल (1473-1509) :-
- मेवाड़ में तालाबों का निर्माण करवाया और कृषि को बढ़ावा दिया |
- इसने मेवाड़ में राम, शंकर और समयासकंट तालाब बनवायें |
- श्रृंगार देंवी रायमल की रानी था जिसने मेवाड़ में धोसुंडा तालाब का निर्माण करवाया |
- घासा का युद्ध :– उदा के पुत्र सहसमल और सूरजमल तथा रायमल के मध्य हुआ |
- सहसमंल और सुरजमल का साथ माँडु के सुल्तान ग्यासुद्दीन ने दिया |
- विजय –रायमल
रायमल के बड़े तीनों पुत्रों में उत्तराधिकारी युद्ध हुआ |
(1) पृथ्वीराज सिसोदिया :-
- यह एक तेज धावक था इस कारण इसे उड़ना राजकुमार कहते है |
- इसकी मृत्यु विष देने से हुई थी | ( सिरोही के शासक जगमाल द्वारा )
- बनवीर पृथ्वीराज सिसोदिया की दासी पुतल दे का पुत्र था |
- यह अपनी बहन आनन्दी बाई के पति जगमाल को समझाने सिरोही गया वहा विष देने के कारण पृथ्वीराज की मृत्यु हो गई |
- पृथ्वीराज अपनी तलवार के बल पर कहता था कि मुझे मेवाड़ राज्य का शासन करने के लिए निर्मित किया गया है |
(2) जयमल :-
- इसकी सगाई टोडा (टोंक) के शासक सुरतान की पुत्री तारा के साथ हुई |
- विवाह के पूर्व ही लडकी देखने के कारण हुए युद्ध में मारा गया |
- बाद में तारा का विवाह पृथ्वीराज के साथ हुआ |
जयमल की छतरी :-जावर (उदयपुर)
(3) राणा सांगा :-
इसने अपने भाईयों से बचने के लिए अजमेर के कर्मचन्द के पास शरण ली |
राणा सांगा (1509-28) :-
- संग्राम सिंह के नाम से यह मेवाड़ का शासक बना |
- इसको संग्राम सिंह प्रथम के नाम से जाना जाता है |
- जब सांगा शासक बना उस समय बना उस दिल्ली का शासक सिकन्दर लोदी था |
- राणा सांगा के शरीर पर 80 घाव थे |
- सांगा के एक आंख, एक हाथ व पैर नहीं था |
- कर्नल जेम्स टॉड ने राणा सागा को सैनिकों का भाग्नावेश कहा है |
- सांगा को हिन्दूपति तथा हिन्दूपात भी कहा जाता है |
- सांगा ने अजमेर के कर्मचंद रावत की उपाधि दी |
- कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार राणा सांगा की सेना में सात राजा,नौ राव और 104 सरदार उसकी सेवा में उपस्थित रहते थे |
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