पारिस्थितिक पिरामिड || Ecosystem Pyramids

Ecosystem Pyramids-पारिस्थितिक पिरामिड

पारिस्थितिक पिरामिड का सिद्वान्त एल्टन के द्वारा (1927) में दिया गया| पारिस्थितिक तंत्र की पोषक संरचना एक प्रकार की उत्पादक-उपभोक्ता व्यवस्था है और पारिस्थितिक तंत्र की पोषक संरचना का अलेखी प्रदर्शन पारिस्थितिक पिरामिड कहलाता है| इन आलेखों में सबसे नीचे का पोषक स्तर उत्पादक तथा सबसे ऊपर का पोषक स्तर माँसाहारी का होता है|

पारिस्थितिक पिरामिड (Ecosystem Pyramids) के प्रकार

पारिस्थितिक पिरामिड तीन प्रकार के होते है|

  1. संख्या का पिरामिड (pyramid of number)– इस पिरामिड में प्रत्येक पोषक स्तर पर व्यक्तिगत संख्या दर्शायी जाती है| संख्या का पिरामिड घास तथा तालाब पारिस्थितिक तंत्र में सीधा वृक्ष पारिस्थितिक तंत्र में उल्टा होता है|
  2. जीवभार का पिरामिड (pyramid of biomass)- इस पिरामिड में प्रत्येक पोषक स्तर पर जीवभार दर्शाया जाता है| जीवभार का पिरामिड घास पारिस्थितिक तंत्र तथा वन पारिस्थितिक तंत्र में सीधा, जबकि तालाब पारिस्थितिक तंत्र में उल्टा होता है|
  3. ऊर्जा का पिरामिड (pyramid of energy)- इसमें निहित ऊर्जा या विभिन्न पोषक स्तरों पर उत्पादकता दर्शायी जाती है| ऊर्जा का पिरामिड सभी पारिस्थितिक तंत्रों में सदैव सीधा होता है|

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उत्पादकता (Productivity)

प्राथमिक उत्पादकों द्वारा प्रकाश-संश्लेषण क्रिया द्वारा बनाए गए कार्बनिक पदार्थो की कुल मात्रा को सकल प्राथमिक उत्पादकता कहते है|

प्राथमिक उत्पादकों द्वारा संचित कार्बनिक पदार्थो या ऊर्जा की मात्रा शुद्धप्राथमिक उत्पादकता कहलाती है| शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता कहलाती है| शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता, सकल प्राथमिक उत्पादकता का वह भाग है, जो श्वसन क्रिया में कार्बनिक पदार्थो के ऑक्सीकरण के पश्चात् शेष बचता है अर्थात् शुद्ध प्राथमिक उत्पादकता=सकल प्राथमिक उत्पादकता-श्वसन में प्रयुक्त ऊर्जा

उपभोक्ताओं के विभिन्न स्तरों द्वारा अधिक मात्रा में संचित पदार्थो के कारण जीवभार में हुई वृद्धि द्वितीय उत्पादकता कहलाती है|

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पारिस्थितिक तंत्र की गतिकी (Dynamics of Ecosystem)

पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवेश, रूपान्तरण तथा विसरण, पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का प्रवाह, ऊष्मागतिकी के नियमों का पालन करता है|

ऊष्मागतिकी के प्रथम नियम के अनुसार ऊर्जा न तो उत्पन्न की जा सकती है और न ही नष्ट की जा सकती है|

ऊष्मागतिकी के द्वितीय नियम के अनुसार ऊर्जा के रूपान्तरण की क्रिया में कुछ ऊर्जा परिवर्तित रूप में तंत्र से परिक्षेपित अवस्था में विसरित होती है|

हरे पौधे या उत्पादक प्रकाश-संश्लेषण की क्रिया द्वारा प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक ऊर्जा में परिवर्तित कर देते है| पारिस्थितिक तंत्र में ऊर्जा का स्थानान्तरण एकदिशीय होता है|

लिन्डेमान (1942) के 10% नियम के अनुसार, एक पोषक स्तर से दूसरे पोषक स्तर में ऊर्जा का केवल 10% भाग स्थानान्तरित होता है, शेष 90% ऊर्जा व्यर्थ जाती है| किसी पारिस्थितिकी तंत्र में ऊर्जा का मूल स्रोत सूर्य है| पारिस्थितिक तंत्र में खाद्य श्रृंखला जितनी छोटी होगी| ऊर्जा का हॉस उतना ही कम होगा|

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खाद्य श्रृंखला (Food chain)

उत्पादकों से प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक उपभोक्ताओं तक जीवधारियों की श्रेणी के द्वारा ऊर्जा के स्थानान्तरण की प्रक्रिया खाद्य श्रृंखला कहलाती है|

घास उत्पादक ——————- खरगोश प्राथमिक उपभोक्ता ————- शेर, चीता द्वितीयक उपभोक्ता ———– बाज तृतीयक उपभोक्ता

प्रकृति में खाद्य श्रृंखला तीन प्रकार की हो सकती है|

  1. परभक्षी खाद्य श्रृंखला – यह हरे पौधों से प्रारम्भ होकर छोटे जन्तुओं में और फिर बड़े जन्तुओं की ओर जाती है|
  2. परजीवी खाद्य श्रृंखला – यह बड़े जन्तुओं से प्रारम्भ होकर छोटे जन्तुओं की ओर जाती है|
  3. मृतोपजीवी खाद्य श्रृंखला – यह मृत प्राणियों से आरम्भ होकर सूक्ष्मजीवों की ओर जाती है|

खाद्य श्रृंखला में उत्पादक से उपभोक्ता तथा अपघटक तक ऊर्जा का स्थानान्तरण सीधी कड़ी के रूप में होता है, परन्तु प्रकृति में विभिन्न खाद्य श्रृंखलाएं आपस में जुड़कर एक तंत्र बनाती है, इसे खाद्य जाल कहते है| इस प्रकार प्रकृति में खाद्य के अनेक वैकल्पिक रास्ते होते है, जो पारिस्थितिक तंत्र में साम्यावस्था के लिए महत्वपूर्ण है|

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