कैलादेवी मन्दिर
कैला देवी का मन्दिर दो स्थानों पर है जो कि एक तो संभल के भूड़े इलाके में तथा दूसरा राजस्थान राज्य के करौली नगर में स्थित है जो एक प्रकार से प्रसिद्ध हिन्दू धार्मिक स्थल है जबकि यहाँ पर उत्तर प्रदेश, हरियाणा, दिल्ली, मध्यप्रदेश की भी तीर्थ यात्री यहाँ दर्शन के लिए आते है
कैलादेवी के मन्दिर परिसर में स्थित बरगद का पेड़ को बताया जाता है की यह काफी महत्वपूर्ण है और इस बरगद के पेड़ को सात सौ साल पुराना बताया गया है जबकि इस माता के दर्शन सोमवार को काफी महत्वपूर्ण होते है
जानिये कैला माता किसकी कुलदेवी है
यह मन्दिर देखा जाये तो यादवों के लिए काफी महत्व बताया गया है और इस कैला माता को यदुवंशी की कुलदेवी माना जाता है
कैलादेवी के कुछ अन्य महत्वपूर्ण तथ्य
- इस मेले की खास बात यह है कि इस मेले में गुर्जर एवं मीणा जाति के लोग लांगुरिया नृत्य करते है
- राजस्थान राज्य में केवल ये ही एक माता माँ मन्दिर है जहाँ बलि नही दी जाती है
- इस कैला देवी के मेले में लाखो लोग सामिल होते है और यह मेला चैत्र शुल्क अष्टमी को प्रतिवर्ष भरता है
- कैला देवी के मेले को लक्खी मेला भी कहाँ जाता है
कैलादेवी का इतिहास
- कैला देवी का मन्दिर उत्तर भारत के प्रमुख शक्तिशाली पीठ के रूप भक्तों के लिए पूजनीय है
- यह कैला देवी का मन्दिर 25 किमी दूरी जो कि राजस्थान राज्य के करौली जिले के कैला गाँव में स्थापित है
- कालीसिल नदी के किनारे त्रिकुट पर्वत पर कैला देवी का मन्दिर स्थित है
- कहाँ जाता है की कैला मैया हनुमान जी की माँ अंजना देवी का अवतार बताया जाता है
- कैला देवी के इस मन्दिर का निर्माण 1600 ई. में राजा भोमपाल ने करवाया था
- कहाँ जाता है कि माता के इस इलाके में नरकासुर नामक का राक्षक रहता है
- यह माता यदुवंशी की जोदान शाखा की कुलदेवी है
- यह कैला देवी का मन्दिर लाल पत्थर तथा सफेद संगमरमर से निर्मित है
- कैला देवी को भगवान श्रीकृष्ण की बहन बताया जाता है
जानिये किस प्रकार होती है मन्दिर के बहार कैलादेव की पूजा
कैलादेवी के मेले या तीर्थ यात्रा में आये हुए 2 लाख से अधिक भक्तो की भीड़ मन्दिर के बहार तक होती है कैला माता की पूजा की 15-20 मिनट लम्बी चलती है इस मेले में आये भक्तों के लिए 24 घंटे आराम की व्यवस्था और खाने के लिए भण्डारों की व्यस्था रहती है कई उनके भक्त कैला माता की यात्रा को कुछ खाने पिये बिना पूरी करते है कैला देवी के मेले में मीणा तथा गुर्जर जाति के लोग आदिवासियों के साथ मिलकर लांगुरिया नृत्य करते है
कैलादेवी के मेले में आये भक्त माता को प्रदान के रूप में नारियल, काजल,टिककी,मिठाइयाँ चढाई जाती है और माता को प्रसन्न लांगुरिया नृत्य करके किया जाता है और मन्दिर में सुबह-शाम आरती भजन किया जाता है
जानिये कैला देवी का मेला वर्ष में कितनी बार लगता है
कैलादेवी का मेला साल में 1 बार आयोजित होता है जिसे लक्खी मेला कहा जाता है और इस मेले में बहुत दूर जैसे हरियाणा, दिल्ली, पंजाब, गुजरात आदि राज्यों से भारी मात्र में भक्त दर्शन के लिए आते है इस मेले में भक्त कालीसिल नदी के स्नान के बाद ही दर्शन के लिए आते है
जानिये कैला माता का मेला कब भरता है
कैला माता का मेला चैत्र नवरात्र में भरता है जबकि इस मेले में काफी लोग माता के दर्शन के लिए पैदल आते है इस मेले में बड़ी संख्या में भीड़ लगती है इस मेले के दौरान भक्तो के खाने तथा आराम की व्यवस्था की जाती है साथ में माता को प्रसन्न करने के लिए लांगुरिया नृत्य किया जाता है |
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