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- Bacteria(जीवाणु):-
Bacteria(जीवाणु):-
जीवाणु प्रोकेरियोटिक, एककोशिकीय सूक्ष्मजीव होते है जो कोशिका भित्ति से घिरे होते है तथा द्विखण्डन द्वारा विभाजित होते है |
जीवाणु(Bacteria) की खोज किसने और कब की
जीवाणु की खोज सर्वप्रथम इंग्लैण्ड के वैज्ञानिक ल्यूवेनहॉक ने 1676 में की तथा “एनीमलक्यूल्स” नाम रखा | सबसे पहले जीवित कोशिका की खोज का श्रेय भी इन्ही को जाता है |
सर्वप्रथम सन् 1878 में टी.जे बरिल ने जीवाणु जनित पादप रोग “नाश्पातिके दग्ध अंगमारी रोग” की खोज की | यह रोग इरविनिया एमाइलोवोरा नामक जीवाणु से उत्पन्न होता है |
जीवाणुओं(Bacteria) के गुण:-
(1) जीवाणु की कोशिका भित्ति “पेप्टिडोग्लाइकन/म्युरीन” की बनी होती है |
(2) प्रत्येक जीवाणु कोशिका में एन्जाइम, न्यूक्लिक अम्ल(DNA और RNA), प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, लिपिड्स आदि होते है वृत्ताकार, स्वतन्त्र एवं द्विरज्जु DNA होता है |
(3) इनमे ऊर्जा उत्पादन हेतु माइटोकॉन्ड्रियानही होता, लेकिन “मिजोसोम”श्वसन स्थल का कार्य करता है |
(4)जीवाणु कोशिका में प्रोटीन संश्लेषण हेतु राइबोसोम्स होते है राइबोसोम्स 70S का अवसादन गुणांक रखते है | ये लगभग 40% प्रोटीन एवं 60% RNA के बने होते है राइबोसोम की छोटी इकाई का 16S राइबोसोमल RNA वर्गीकरण का प्रमुख आधार है |
(5)ग्राम निगेटिव जीवाणु ज्यादातर पादप रोग करते है जैसे -जेंथोमोनस, स्यूडोमोनास, इरविनिया लेकिन कुछ ग्राम पोजिटिव भी होते है जैसे -क्लेवीबेक्टर, स्ट्रेप्टोमाइसिज |
जानिये जीवाणु कोशिकाओं के आकार :-
अधिकतर जीवाणु कोशिकाएँ छ्डाकार होती है, जो 2 से 25 um लम्बी व 0.5 um चौड़ी होती है जीवाणु कोशिकाएँ अनेक आकार वाली होती है वैसे तो इन्हें 4 भागों में बाँटा गया है |
(1)गोलाकार :-
देखा जाये तो इस प्रकार की कोशिकाएँ गोल होती है जबकि इसमें जीवाणु(Bacteria)एक क्रम में व्यवस्थित रहते है वे भी निम्न प्रकार के होते है
(A)माइक्रोकोकस :-
इसके समूह में प्रत्येक जीवाणु कोशिका अलग-अलग रहती है |
(B)डिप्लोकोकस :-
इस समूह के जीवाणुओं की कोशिकाएँ दो-दो के जोड़ों मर रहती है |
(C)स्ट्रेप्टोकोकस :-
इस प्रकार के जीवाणु माला की तरह श्रृंखला बनाकर रहते है |
(D)टेट्राड :-
इसमें चार जीवाणु कोशिकाएँ चौरस समूह में रहती है |
(E)सारसीना :-
टेट्राड जीवाणु विभाजित होकर यदि पीछे चार गोलाणु और बना ले तथा इनकी संख्या 8,64 या अधिक घनाकार पैकेट में हो, तब इन्हें सारसीना कहते है जैसे -सारसीना लूटिया |
(F)स्टैफिलोकोकस :-
गोल कोशिका विभाजित होकर अंगूर के गुच्छो के समान दिखाई देती है जैसे -स्टैफिलोकोकस ऑरियस |
(2)छड़ाकार :-
छड़ाकार Bacteria अधिकतर पादप रोग करते है जैसे -जेन्थोमोनास |
(3)सर्पिलाकार :-
यह जीवाणु की कोशिकाओं का सर्पिलरूप होता है जैसे-स्पाइरिलम वोल्युटांस |
(4)विब्रियो :-
यह जीवाणु देखा जाये तो कोमा के आकार के घुमावदार होते है जैसे-विब्रिया कॉलरी |
जीवाणु( Bacteria)की संरचना
- जीवाणु कोशिका एक कठोर भित्ति द्वारा घिरी होती है कोशिका भित्ति के बाहर एक पतली श्लेष्मा होती है | जब यह पतली परत फूलकर, एक निश्चित स्लेष्मी आवरण बना लेती है तब इसे सम्पुटिका कहते है |
- कुछ जीवाणु कोशिकाओं की सतह पर पाइलीन प्रोटीन से निर्मित बारीक बाल सदृश संरचना पाई जाती है जिनको पाइलाइ कहते है यह तरल माध्यमों पर एवं संयुग्मन के समय कोशिकाओं को चिपकने में सहायता करती है |
- जीवाणु कोशिकाओं में जीनोम गुणसूत्र के रूप में संगठित नही होता है, लेकिन इसका प्रतिनिधित्व एक वृत्ताकार, लम्बे DNA अणु द्वारा किया जाता है जिसका न्यूक्लिओइड या जीनोफोर कहते है |
जीवाणु( Bacteria) कोशिका के कुछ मुख्य अंगो का वर्णन निम्न प्रकार है
(1)कणिका :-
यह कोशिका द्रव्य में कुछ संरक्षित पदार्थ होते है जो पॉलीसैकेराइड्स, लिपिड्स आदि से मिलकर बने होते है तथा ऊर्जा उत्पादन हेतु यह खाध पदार्थो को संरक्षित रखते है
(2)कोशिका झिल्ली :-
यह झिल्ली कोशिका भित्ति से घिरी होती है | यह फॉस्फोलिपिड्स, प्रोटीन एवं कुछ पॉलीसैकेराइड्स से मिलकर बनी होती है यह घुले हुए आहार पदार्थो को कोशिका के अंदर आने तथा व्यर्थ पदार्थो को कोशिका से बाहर निकालने का काम करती है |
(3)न्यूक्लिक अम्ल :-
जीवाणुओं में आनुवांशिक पदार्थ द्विरज्जू DNA होता है जो हिस्टोन प्रोटीन रहित होता है तथा केन्द्रक झिल्ली से आबध नही होता है, प्रोटीन संश्लेषण हेतु कोशिका में RNA भी मौजूद होते है |
(4)प्लाज्मिड :-
कुछ जीवाणु प्रजातियों में गुणसूत्रीय DNA के अतिरिक्त एक या अधिक वृत्ताकार द्विरज्जू DNA अणु ओर होते है जिन्हें प्लाज्मिड कहते कहते है | यह कोशिका को प्रतिजेविको के विरुद्ध लड़ने की क्षमता करते है |
(5)मध्यकाय :-
जीवाणु(Bacteria) कोशिका की कोशिका झिल्ली, अन्दर की तरफ अन्तर्वलित होकर वयुकोश जैसी संरचना बना लेती है, जैसे मीजोसोम कहते है यह जीवाणुओं में माइटोकॉन्ड्रिया का कार्य करता है अर्थात् श्वसन के समय पट निर्माण एवं DNA पुनरावृति में मदद करता है |
(6)कशाभिका :-
कई जीवाणु गतिशील होते है यह गति कोशिका पर उपस्थित महीन तन्तु जैसी संरचना की वजह से प्राप्त होती है, जिसे कशाभिका कहते है यह कशाभिका फ्लैजिलिन नामक प्रोटीन की बनी होती है|
कशाभिका विन्यास के आधार पे जीवाणुओं को निम्न भागों में बाँटा जा सकता है
एकल कशाभिक :-
एकल कशाभिक जीवाणु कोशिका में देखा जाये तो सिरे पर एक कशाभिका पाई जाती है उन्हें एकल कशाभिका कहते है जैसे -विब्रियो व जेन्थोमोनस
उभय कशाभिक :-
जब जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर एक-एक कशाभिका उपस्थित हो, तो ऐसी कोशिका उभयकशाभिक कहलाती है जैसे-नाइट्रोसोमोनास आदि |
एकल गुच्छ कशाभिक :-
जब जीवाणु( Bacteria) कोशिका के एक सिरे पर अनेक कशाभिकाएं उपस्थित हो, जैसे माइकोबैक्टीरियम आदि |
द्विगुच्छ कशाभिक :-
जब जीवाणु कोशिका के दोनों सिरों पर अनेक कशाभिकाएं मौजूद हो, जैसे स्पाइरिलम आदि
परिरोमी :-
जब जीवाणु कोशिका के चारों ओर कशाभिकाएं उपस्थित हो, जैसे-इरविनिय एवं एस्चेरिचिया |
अकशाभिक :-
इसके अंदर अकशाभिका का मतलब बिना कशाभिक जीवाणु कोशिका का होना, जैसे-माइक्रोकोकस वंश की जातियाँ |
कोशिका भित्ति :-
जीवाणु की कोशिका भित्ति पेप्टिडोग्लाइकन/म्यूरीन की बनी होती है भित्ति का मुख्य कार्य जीवाणु कोशिका को दृढ़ता एवं आकृति प्रदान करना है इसके अलावा यान्त्रिक एवं रासायनिक आघातों से बचाने का काम भी करती है
सन् 18८4 में एच.सी. ग्राम ने जीवाणु(Bacteria) कोशिकाओं को अभिरंजन के आधार पर दो भागों में बाँटा गया है (1) ग्राम ग्राही (2)ग्राम अग्राही
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