विषाणु – Virus

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विषाणु(Virus):-

देखा जाये तो विषाणु सूक्ष्मदर्शीय कण होते है जो प्रोटीन द्वारा घिरे हुए अकेली जाति के न्यूक्लिक अम्ल से बने होते है यह कण केवल जीवित परपोषी कोशिकाओं के अंदर, कोशिका की मशीनरी का उपयोग कर गुणन करते है |

विषाणु(Virus) की खोज :-

विषाणु को जर्मन वैज्ञानिक एडोल्फ मेयर ने सन् 1886 में तम्बाकू में एक रोग का वर्णन किया था जिसका नाम उसने मोजेक रखा, उसने बताया कि रोगी पत्तियों का रस,स्वस्थ तम्बाकू के पौधों की पत्तियों में लगा देने पर मोजेक रोग के लक्षण प्रकट हो जाते है|

इवानोवस्की ने सन् 1892 में सिद्ध किया कि तम्बाकू मोजेक रोग से ग्रसित पत्तियों का इस सबसे महीन जीवाणु निस्यंदको से छनने के बाद भी यह रस अपनी संक्रामकता बनाये रखता है |

बीजेरिक ने सन् 1898 में बताया कि तम्बाकू का मोजेक रोग एक सूक्ष्मजीव द्वारा न होकर, छनने एवं विसरण योग्य तरल पदार्थ के द्वारा होता है जिसको “संक्रामक जीवित तरल” नाम देते हुए, “विषाणु” कहा |

Query :- बीजेरिक को पादप विषाणु(Virus) विज्ञान का जनक भी कहाँ जाता है|

स्टेनले ने सन् 1935 में तम्बाकू मोजेक विषाणु को क्रिस्टल रूप से प्राप्त किया तथा इस कार्य हेतु उनको 1946 में रसायन का नोबल पुरस्कार मिला |

विषाणु(Virus) के गुण :-

  • ये अत्यधिक संक्रामक एवं ताप के प्रति संवेदनशील होते है
  • परिपक्व विषाणु(Virus) कण को विरियोन कहते है
  • विषाणुओं में आनुवांशिक पदार्थ या तो DNA या RNA होता है जो प्रोटीन के आवरण से ढका होता है जिसको कैप्सिड कहते है
  • विषाणुओं का “न्यूक्लिक अम्ल”संक्रमणकारी होता है जबकि “प्रोटीन” सुरक्षा कवच का कार्य करती है
  • अधिकतर पादप विषाणुओं में आनुवांशिक पदार्थ RNA होता है लेकिन कुछ में तो DNA भी होता है
  • विषाणु अकोशिकीय होते है जो कि “न्युक्लियो-प्रोटीन” के बने अति सूक्ष्म कण होते है
  • ये प्रोटीन संश्लेषण हेतु परपोषी कोशिका के राइबोसोम्स का उपयोग करते है
  • विषाणु अविकल्पी परजीवी होते है तथा जीवित कोशिकाओं के अन्दर ही अपना गुणन करते है

विषाणुभोजी क्या है?

वह विषाणु(Virus) जो जीवाणु कोशिकाओं को संक्रमित करते है उन्हें जीवाणुभोजी कहते है|

खोज :- स्वतन्त्र रूप से सर्वप्रथम इनकी खोज ट्वोर्ट ने सन् 1915 में किया था|

डी’ हेरेल ने विषाणुभोजी की खोज सन् 1917 में की थी लेकिन “जीवाणुभोजी” नाम 1917 में डी’ हेरेल ने दिया था और बताया गया कि गंगा नदी का पानी साफ रहने के लिए जीवाणुभोजी उत्तरदायी है|

वाइरोइड क्या है

वाइरोइड अति सूक्ष्म, वृत्ताकार, सहसंयोजक रूप से बन्द, निम्न अणुभार वाले, एकल सूत्रीय, नग्न राइबोन्यूक्लिक अम्ल के कण, जो पौधों में संक्रमण करके रोग उत्पन्न करते है उन्हें वाइरोइड कहते है|

खोज :- वाइरोइड की खोज सर्वप्रथम टी.ओ. डाइनर ने सन् 1971 में की थी, जबकि उन्होंने बताया की “आलू का तर्कु कन्द रोग” वाइरोइड के द्वारा उत्पन्न होता है तथा उन्होंने ही “वाइरोइड” शब्द दिया था

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वाइरोइड के गुण :-

  • वाइरोइड्स में प्रोटीन का आवरण नही पाया जाता है
  • वाइरोइड्स में केवल वृत्ताकार एवं एकसूत्रीय RNA नामक न्यूक्लिक अम्ल होता है
  • ये सबसे छोटे रोगजनक है जो केवल पौधों में ही रोग उत्पन्न करते है यह अविकल्पी परजीवी है
  • आलू का तर्कु कन्द रोग, नारियल का कडन्ग रोग इत्यादि वाइरोइड्स के द्वारा उत्पन्न होते है

प्रीयोन क्या है

प्रीयोन ही एक ऐसा रोगजनक है जिसमे “न्यूक्लिक अम्ल” नही होता है इसके द्वारा मनुष्य में “कूरू” एवं “सी.जे.डी.तथा पशुओं में “स्क्रेपी” एवं “मेड़ काउ” रोग उत्पन्न होते है जबकि पौधे में इसके द्वारा कोई रोग नही मिला है|

खोज :- प्रीयोन की खोज सन् 1982 में एस.बी.प्रूजीनर ने भेड़ो, बकरी के स्क्रेपी रोग में “संक्रमणकारी प्रोटीन कण” की खोज कर “प्रीयोन” नाम रखा, इस कार्य हेतु उन्हें सन् 1997 में नोबल पुरस्कार दिया गया था| और बताया गया कि प्रीयोन एक “प्रोटीनमय संक्रामक कण है जिसको “स्लो वायरस” एवं “पतलिंग प्रोटीन के नाम से भी जाना जाता है |

Conclusion

हम आशा करते है कि आज की इस पोस्ट में आप विषाणु(Virus) से सम्बंधित पूरी जानकारी प्राप्त कि होगी और इस पोस्ट से आप को बहुत कुछ सिखने को मिला होगा, अगर आपको यह पोस्ट अच्छी लगी तो अपने दोस्तों के साथ शेयर जरुर करे, धन्यवाद

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