दोस्तों आज हम इस आर्टिकल के माष्यम से क्या है टिड्डा तथा टिड्डा की बाह्य संरचना, टिड्डा का कृषि में महत्व, नुकसान से सम्बंधित पूरी जानकारी इस पोस्ट में पढ़ेंगे जो आपके लिए महत्वपूर्ण होंगे|
क्या है टिड्डा
क्या है टिड्डा -टिड्डा के पंखयुक्त कीट है जो वर्षा ऋतु में टिड्डा फसलों को अपने काटने एवं चबाने वालें मुखांगो द्वारा नुकसान पहुंचाता रहता है, अतः इसे खरीफ का टिड्डा भी कहते है|
यह बहुत भूखा शाकाहारी एवं विश्व व्यापी होता है| शरीर विभिन्न रंगों के धब्बे लिये होता है, इसका कंकाल बाह्य होता है जो काइटिन का बना होता है|
टिड्डा की बाह्य संरचना
टिड्डा का शरीर सिर, वक्ष, एवं उदर तीन भागों में बँटा रहता है|
(1) सिर (Head)
बाहरी संवेदनाओं को ग्रहण करने के लिए इसके सिर पर एक जोड़ी श्रृंगिका, एक जोड़ी संयुक्त नेत्र स्थित होते है| उपनेत्र दोनों आँखों के मध्य स्थित होते है जो अधिक से अधिक तीन हो सकते है|
- टिड्डा का मुख अधोन्मुखी प्रकार का होता है|
- मुखांग नीचे की ओर लगे रहते है|
- मुखांग नीचे की ओर लगे रहते है|
- सुनने, गन्ध का पता लगाने, भोजन के स्वाद एवं अपने रास्ते का पता लगाने का कार्य अन्य कीटों की तरह यह श्रृंगिका की सहायता से लगाता है|
(2) वक्ष (Thorax)
सिर के साथ जुड़ा हुआ भाग वक्ष कहलाता है यह तीन भागों में बंटा होता है, अग्र वक्ष, मध्य वक्ष एवं पश्च वक्ष| वक्ष के इन तीनों खण्डों पर प्रत्येक खण्ड के नीचे की सतह पर एक एक जोड़ी टाँगें लगी होती है जो सभी मिलाकर छ हो जाती है|
मध्य एवं पश्च वक्ष पर एक जोड़ी पंख लगे रहते है| इसके पश्च वक्ष की टाँगे कूदने वाली होती है| जिसका टिबियाँ एवं फीमर, भाग मजबूत लम्बा एवं शक्तिशाली होता है| टाँगे 5 भागों में बंटी होती है जो क्रमशः कोक्सा, ट्रोकेण्टर फीमर टिबिया, टारसस कहलाता है टारसस पुनः तीन खण्डीय होता है,
- प्रीटारसस
- मीजोटारसस
- मेटाटारसस
(3) उदर (Abdomen)
यह भाग कुल ग्यारह खण्डों का बना हुआ होता है| प्रत्येक खण्ड का पृष्ठीय वाला खण्ड टरगम एवं उदर वाला खण्ड स्टर्नम कहलाता है, इसे एक पाशर्व झिल्ली जोड़े रखती है जो प्लुरोन कहलाती है|
प्लुरोन में दोनों तरफ एक-एक श्वसन छिद्र होता है| टिड्डे में कुल 10 जोड़ी श्वसन छिद्र होते है, उदर में 8 जोड़ी एवं वक्ष में 2 जोड़ी होती है|
नवें एवं दसवे खण्ड में श्वसन छिद्र नहीं होते है| नवाँ व दसवाँ खण्ड इस प्रकार जिदा होता है कि वो अलग नहीं लगते है| कुछ वैज्ञानिक ग्यारहवें खण्ड को दसवे खण्ड का ही उपांग मानते है जिसके अंत में मलद्वार होता है|
मादा का उदर नर की अपेक्षा अधिक नुकीला होता है जो 8वें एवं 9वें खण्ड के अवयवों से ,मिलकर बना होता है जिसे अण्डकोष्ठ को मिट्टी में सहायता से अण्डकोष्ठ को मिट्टी में गड्डा खोदकर अण्डकोष्ठ के अण्डे को मादा सेने हेतु दबा देती है|
टिड्डे में कितने पैर होते है?
टिड्डे में पैरों की जोड़ी पाँच(5) पायी जाती है|
Grasshopper (टिड्डा) क्या खाता है?
यह कीट अधिकतर खरीफ की फसलों को नुकसान पहुचता है जबकि यह भोजन अपने वजन के बराबर खाता है एक टिड्डी दल भोजन 3000, 2000 लोगों का खा जाती है|
टिड्डे का कृषि में महत्व
टिड्डा वैसे तो किसान की फसलों को नुकसान पहुँचाता है परन्तु मानवीय भोजन को सुरक्षित रखने की दृष्टि से इसको नियंत्रित करना आवश्यक है फिर भी प्रकृति में यह कीट नही होता तो पारिस्थतिकी तंत्र एक अलग तरह का होता है यह अत्यधिक भोजन करने के कारण मल त्याग भी अत्यधिक करता है एवं इसके मल को सूक्ष्म जीव गोबर की खाद की तुलना में ज्यादा कुशलता से मृदा की उर्वरता को बढ़ाते है एवं इसकी मृत्यु होने पर इसके शरीर की नाइट्रोजन को सूक्ष्म जीव आसानी से मृदा की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक होते है, जिससें पौधों का अच्छा विकास होता है|
पारिस्थितिकी तंत्र में यह परभक्षियों के लिए भोजन के रूप में मुख्य भूमिका निभाता है| मकडियों, पक्षियों, छिपकलियों के द्वारा इसे भोजन के रूप में खाया जाता है जिससें वे स्वस्थ रहकर पारिस्थिकी तंत्र को बनाये रखते है यह प्रकृति की समस्त हरियाली का 10% सेवन करता है जिससे पौधों की अवांछित वृद्धि नही हो पाती है|
कुछ देशों में टिड्डे एवं टिड्डी को भोजन के रूप में खाया जाता है| दक्षिणी मैक्सिको में चापूलाईन नाम से इसके अनेक व्यंजन बनते है जिसके अंतर्गत टोरटिलस प्रमुख व्यंजन है, जिसे मिर्ची के साँस के साथ खाया जाता है| डेंगूमेन नाइट मार्केट नामक कुछ चीनी खाद्य बाजारों में इसे भोजन के रूप में वितरित किया जाता है| तले हुए टिड्डे को जावा व इंडोनेशिया में खाया जाता है| ओहलोन नामक अमेरिका का मूल निवासी रात्रि को एक खड्ढे में घास जलाकर इनको भोजन के लिए इकट्ठा करते है|
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