दोस्तों आज हम इस आर्टिकल के माध्यम से फसलों को नुकसान पहुँचाने वाले टिड्डा(Grasshopper) का जीवन चक्र की जानकारी पढ़ेंगे|
टिड्डा का जीवन चक्र
टिड्डा का जीवन चक्र -फसलों को नुकसान पहुँचाने वाला यह कीट अपने जीवन चक्र को पूर्ण करने हेतु तीन अवस्थाओं क्रमशः अण्डा, शिशु एवं प्रौढ़ अवस्था को प्राप्त करता है अर्थात लार्वा(लट) एवं प्यूपा(कृमिकोष) के अभाव में यह अपूर्ण रूपान्तरण कहलाता है|
टिड्डे के जीवन चक्र की अवस्थाएँ
(1) अण्डा (Egg)
यह टिड्डा का जीवन चक्र की अवस्था सितम्बर के अंतिम पखवाड़े एवं अक्टूबर के प्रथम पखवाड़े में नर एवं मादा टिड्डे मैथुनावस्था में कई घंटो तक रहते है तत्पश्चात नर टिड्डा कुछ दिनों बाद भर मर जाता है एवं मादा अण्डे देने शुरू करती है| जिसका अण्डकोष्ठ उदर के अंतिम खण्ड के जनन अंग में लगा रहता है, जिससे लगभग 40 अण्डे होते है|
जहा मुलायम एवं नम मिट्टी मिल जाती है वही यह उदर के अंतिम सिरे अण्डरोपक को जमीन में डालकर टांगो की सहायता से सिर ऊपर करके गोल गोल घूमती है जिससे एक गहरा गड्ढा बन जाता है, उसी में यह अण्डकोष्ठ को रखने के पश्चात् गड्ढे के ऊपरी सिरे पर अपने जनन छिद्र से एक झागदार द्रव निकालती है जिसके सूखने पर यह सीमेन्ट की तरह जम जाता है इस प्रकार अण्डकोष्ठ सर्दी एवं गर्मी ऋतु तक लगभग 9 माह तक मृदा में ही रहता है|
(2) शिशु (Nymph)
वर्षा ऋतु के दौरान नमी के सम्पर्क में आते ही अण्डकोष्ठ के अण्डे फूटने से पंखरहित शिशु मृदा से बाहर निकलने लगते है, एवं भोजन की तलाश में फुदकने लगते है भोजन की उपलब्धता पर जब शरीर का आयतन बढ़ने लगता है, तो यह अपने शरीर से काइटिन का बना त्वचा रूपी बाह्य ढ़ाचा त्याग कर नये ढांचे को प्राप्त करते है जिसे निर्मोचन कहते है|
शिशु से वयस्क बनने तक अपनी त्वचा का 5, 6 बार निर्मोचन करते है, द्वितीय निर्मोचन के पश्चात् इनके पंखो का विकास होने लगता है| इस प्रकार शिशु से वयस्क बनने में नर 70 व मादा 80 दिन ले लेती है|
(3) प्रौढ़ (Adult)
मैथुन के पश्चात् नर एवं अण्डे देने के पश्चात् मादा भी मृत्यु को प्राप्त हो जाती है, इस प्रकार वर्ष में केवल एक पीढ़ी पायी जाती है|
टिड्डे के मुखांग (Mouth parts)
टिड्डे के मुखांग काटने व चबाने प्रकार के होते है| जिन्हेँ आदिम प्रकार माना जाता है आइसोप्टेरा एवं कोलियोप्टेरा गणों वालें कीटों के मुखांग भी इसी प्रकार के होते है| इस प्रकार के मुखांग वाले कीट पौधे एवं पेड़ों की पत्तियों को काट कर अनियमित छिद्र बना देते है|
(1) ऊपरी होठ (Labrum)
यह चौड़ा तथ खोखला होता है| जो सिर के क्लाइपियस से जुड़कर मुखद्वार पर छज्जे की तरह छाया रहता है एवं मुख को आगे से बंद करता है|
(2) चिबुकास्थि
ये एक जोड़ी कठोर खण्डरहित त्रिभुजाकार होते है, जो ऊपर से चपटे तथा भीतरी किनारों पर आरी जैसे दाँत होते है, जो भोजन को काटने एवं चबाने का कार्य करते है|
(3) जंभिका (Maxillae)
चिबुकास्थि के ठीक पीछे की ओर यह स्थित होती है यह एक जोड़ी होती है ये भोजन को इस प्रकार से पकड़ कर रखती है कि चिबुकास्थि इसे आसानी से काट सके| आधार से यह कार्डो स्टाइप्स से जुड़ी रहती है, शेष भागों में लैसेनिया गैलिय एवं मैक्सीलरी पैल्प जुड़े रहते है|
(4) निचला होठ (Lablum)
यह जंभिका के पीछे होता है जो मुँह को बंद करने का काम करता है अर्थात निचला होठ बनाता है| इसके शेष भाग लिग्युमा, प्रीमेन्टम, मेंटम, सबमेंटम एवं लेबियम पेल्प होते है|
(5) अधोग्रसनी (Hypopharyax)
मुखगुहा के मध्य में एक जीभ जैसा अंग होता है, यह अधोग्रसनी कहलाता है|
टिड्डे का वैज्ञानिक नाम
टिड्डे का वैज्ञानिक नाम -हिरोग्लाइफस बेनियान (Hieroglyphus banian)
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